Friday, June 20, 2008

हिंदी फिल्मों की बॉक्सिंग

बुधवार देर रात को मनोरंजन चैनल जी नैक्सट पर सोहेल खान अभिनीत और निर्देशित फिल्म आर्यन आ रही थी। वैसे सोहेल खान की फिल्में मुझे ज्यादा नहीं भाती लेकिन यह फिल्म बॉक्सिंग पर बनी थी इसलिए ठहर गया। पूरी फिल्म देखी। फिल्म ठीक-ठाक भी थी लेकिन इसमें बॉक्सिंग को जिस तरह दिखाया गया वह मुझे कुछ खास नहीं लगा।

फिल्म का नायक आर्यन (सोहेल खान) एक बॉक्सर है और उसका लक्ष्य है नेशनल बॉक्सिंग खिताब जीतना। ध्यान दें नेशनल बॉक्सिंग खिताब। जहां तक मेरी जानकारी है नेशनल बॉक्सिंग एक अमैच्योर प्रतियोगिता है लेकिन इस फिल्म में इसे प्रोफेशनल बॉक्सिंग की तरह दिखाया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि नायक का मुख्य प्रतिद्वंदी रंजीत (इंदर कुमार) तीन बार का नेशनल चैंपियन है और वह पूरे भारत में लोकप्रिय है। मीडिया उसके पीछे-पीछे दौड़ती है और उसके प्रशंसक उसकी एक झलक पाने को बेताब रहते हैं। यह भी दिखाया गया है कि क्लाइमैक्स में आर्यन और रंजीत के बीच होने वाले मुकाबले का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण हो रहा है।

मुझे ताज्जुब हो रहा है कि भारत में अमैच्योर बॉक्सिंग कब से इतनी लोकप्रिय हो गई और कब से मीडिया एक नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन के पीछे भागने लगी। यहां लोग मोहम्मद अली, माइकल टायसन और इवांडर होलीफील्ड जैसे प्रोफेसनल हैवीवेट मुक्केबाजों का नाम भले ही जानते हों लेकिन वे नेशनल चैंपियन का नाम याद नहीं रखते।

अगर आपने कभी अमैच्यौर बॉक्सिंग देखी हो (नेशनल या इंटनेशनल) तो आपको इस फिल्म में दिखाए गए सभी सिक्वैंस बड़े ही बेतरतीब लगेंगे। फिल्म में यह भी नहीं बताया गया कि आर्यन किस भार वर्ग (लाइटवेट, बैंटमवेट या हैवीवेट) का बॉक्सर है। फिल्म में फाइनल मुकाबला दस राउंड का दिखाया गया है जबकि नेशनल बॉक्सिंग के मुकाबले दो-दो मिनट के तीन राउंड के होते हैं और हर राउंड के बीच एक मिनट का अंतराल होता है। हालांकि ओलंपिक और कॉमनवेल्थ जैसी प्रतियोगिताओं में यह चार राउंड का होता है। फिल्म में आर्यन की पूरी तैयारी एक गाने में खत्म हो जाती है जबकि फाइनल मुकाबला करीब 25-30 मिनट तक चलता है।

हाल ही में बॉक्सिंग पर एक और फिल्म बनी है जिसका नाम है अपने। इसमें आर्यन के उलट प्रोफेसनल बॉक्सिंग को दिखाया गया है। लेकिन यह फिल्म भी बॉक्सिंग पर बनी उम्दा फिल्मों की तुलना में कहीं नहीं ठहरती। इसमें बचपन से एक हाथ से अपाहिज रहने वाले बाबी देओल हाथ ठीक होते ही हैवीवेट मुकाबले में उतर जाते हैं तो कई साल से बॉक्सिंग से दूर रहे सन्नी देओल अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए रिंग में उतरते हैं और व‌र्ल्ड चैंपियन भी बन जाते हैं। फिल्म के निर्देशक अनिल शर्मा ने हैवीवेट बॉक्सिंग को इस तरह ट्रीट किया कि यह दो बच्चों के बीच गली में होने वाली लड़ाई हो।

पता नहीं भारत में खेल पर सिनेमा बनाने वालों के दिमाग में यह बात क्यों होती है कि नायक को अंत में जीतना ही जीतना है। ऐसा भी नहीं है कि हमारे यहां खेलों में जीत दर्ज करने की जबरदस्त परंपरा रही हो और इसलिए यहां के दर्शक जीत से कम कुछ बर्दास्त नहीं करेंगे। एक आध खेलों को छोड़ दे तो हम इस क्षेत्र में हमेशा ही फिसड्डी ही रहे हैं। इसलिए बेहतर हो कि फिल्म निर्माता अगर खेल पर फिल्म बनाए तो खिलाड़ी (नायक) के बेहतरीन प्रयास को उकेरने की कोशिश करे न कि हर हाल में उसे जीताने की।

वहीं बॉक्सिंग पर बनी कुछ ऑल टाइम ग्रेट फिल्मों की कहानी पर नजर दौड़ाएं तो शायद ही कोई फिल्म अपने नायक या नायिका की रिंग में जीत के साथ समाप्त होती है। 1980 में रोबर्ट डी नीरो अभिनीत रोजिंग बुल इस का शानदार नमूना है। इस फिल्म का नायक जेक लामोटा (नीरो) एक अच्छा बॉक्सर रहता है जो अपने भार वर्ग का चैंपियन है। लेकिन फिल्म की कहानी उसके चैंपियन बनने को लेकर नहीं बल्कि उसके चैंपियन की गद्दी से फिसलकर ओवरवेट हो जाने, एक कामेडियन बनने, किसी कारणवश जेल जाने और जेल से छूटकर फिर बॉक्सर बनने के प्रयास की दास्तान बयान करती है। इस फिल्म की गिनती अमेरिका की सर्वकालिक महान फिल्मों में होती है।

इसी तरह 1976 में बनी फिल्म राकी (जिसने सिलवेस्टर स्टोलेन को पहचान दिलाई) भी बॉक्सिंग पर बनी शानदार फिल्म है। सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर जीतने वाली इस फिल्म के अंत में नायक को बॉक्सिंग फाइट जीतते हुए नहीं बल्कि हारते हुए दिखाया गया है। फिर भी लोग राकी के दीवाने हुए क्योंकि वह भले ही फाइट हार गया लेकिन उसने विश्व चैंपियन को पूरे 15 राउंड तक मुकाबला करने पर मजबूर किया।

बॉक्सिंग पर सबसे हाल-फिलहाल बनी उम्दा फिल्म है मिलियन डॉलर बेबी। इस फिल्म का अंत तो खासा दुखद है। यह फिल्म एक ऐसी महिला बॉक्सर के ऊपर बनी है जो 31 साल की उम्र में विश्व चैंपियन बनने का ख्वाब देखती है। लेकिन अंत में वह चैंपियन नहीं बनती बल्कि गले के आसपास लगी चोट से लकवाग्रस्त हो जाती है। उसके कोच को अपनी शिष्या का दर्द नहीं देखा जाता है और वह उसे एड्रीनेलीन का ओवरडोज देकर कष्टमय जीवन से मुक्ति दिला देता है। इस फिल्म को चार ऑस्कर मिले और 30 मिलियन डालर में बनने वाली इस असाधारण फिल्म ने 220 मिलियन डॉलर कमाए।

कहा जाता है कि हमारे यहां के फिल्म निर्माता हालीवुड से प्रेरणा लेते हैं तो भाई स्पो‌र्ट्स पर फिल्म बनाते समय यह प्रेरणा कहां चली है। खेल पर फिल्में बनाइए लेकिन ऐसी फिल्में बनाइए जिससे खेल का भला हो, दर्शक खेल के असल स्वरूप से रूबरू हो आप अच्छी कमाई भी करें। आर्यन और अपने दोनों ही फिल्में इन पैमानों पर नाकाम रही और उम्मीद के मुताबिक बुरी तरह पिटी भी।

8 comments:

Ashutosh jha said...

bahut achha hai. ab pata chala ki flop hero ke bhi cahete hai
prayas achha hai

समयचक्र said...

bahut badhiya filmi rapat hai .

Arvind Mishra said...

लेख लिखने से पहले काफी माल खंगाला है। बढ़िया है। बदले जोनर भी आप बेहतर हैं।

Udan Tashtari said...

सही समीक्षा है जी.

Rajesh Roshan said...

एक साँस में पढ़ गया... हमारे यहाँ के निर्माता हीरो को सुपर हीरो बनने में विश्वास रखते हैं.... शायद भारतीय जनमानस ही ऐसा सोचता है... सचिन से शतक से कम तो हम अपेक्षा ही नही करते... पेस या भूपति अच्छा खेले ये कौन चाहता है... मैडल और ट्राफी चाहते हैं लोग.

CG said...

लगता है आप बॉक्सिंग की ट्रेनिंग ले चुके हैं. मैंने भी शुरु कर दी है :) एक बात बताना चाहूंगा, बॉक्सिंग Brute Force का खेल है. रोज़ाना ट्रेनिंग के बाद पूरे दिन knuckles को पता चलता है कि उनके साथ क्या हुआ था.

वैसे बॉक्सिंग मूवीज़ मुझे भी बहुत पसंद है. रॉकी के छ: भाग देखे, मिलियन डॉलर बेबी देखी, रेजिंग बुल भी देखी, एक और थोड़ी under-rated फिल्म है जो मुझे अच्छी लगी Against the Ropes. उसमें भी फाइट असली थीं.

आप से बॉक्सिंग के बारे में बात करके मज़ा आया :)

Ashutosh jha said...

juth nahi bolunga.aaj fursat se tumahara article pada.ise ek khel samikshak ki samikcha kahe ya phir film critics ke critism samaj me nahi aata. mai janta hu tumhe sports ka kaphi gyan hai.lekin film ke bare me bhi etni jankari rakhate ho nahi pata tha. article mind blowing hai. congrats

Unknown said...

Isi tarah ki Ek hindi film aayi thi 'Me Intkaam lunga'. Dara Singh aur Dharmendra abhinit yeh ek behtrin filmo me se ek thi. Is Article ne is film ki yaad dila di. Iska ek gaana 'Mummy o mummy.. tu kab saas banegi...' Bahut famous hua tha.
Tikam Chand Jain

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