
आजकल लगता है फुटबाल को भी राजनीति की एंटी इनकंबेंसी वाली बीमारी लग गई है। जिस प्रकार राजनीति में मौजूदा विधायक, मौजूदा सांसद और मौजूदा सरकार के चुनाव जीतने की संभावना काफी कम रहती है उसी तरह फुटबाल में भी डिफेंडिंग चैंपियनों के जीत की उम्मीद भी कम हो रही है।
इस समय स्विट्जरलैंड में चल रहे यूरो कप का ही उदाहरण ले लीजिए। डिफेंडिंग चैंपियन ग्रीस बिना एक भी गोल किए पहले दौर से बाहर हो गया। उसके खेल को देख कर लगा ही नहीं कि चार साल पहले इसी टीम ने पुर्तगाल की धरती पर तमाम यूरोपीय टीमों को धूल चटाई थी। इसी तरह सैफ फुटबाल में भी डिफेंडिंग चैंपियन भारत फाइनल में मालदीव से हारकर बाहर हो गया।
इसी तरह पिछले विश्व कप में ब्राजील की टीम क्वार्टर फाइनल तक का ही सफर तय कर पाई जबकि उसके पिछले विश्व कप में उस समय का डिफेंडिंग चैंपियन फ्रांस पहले ही दौर में बाहर हो गया था। उसे सेनेगल जैसी नौसिखिया टीम ने मात दी थी और फ्रांसीसी टीम तीन लीग मैचों में एक भी गोल नहीं कर पाई थी।
लेकिन जिस तरह राजनीति में कुछ विधायक, सांसद या सरकार लगातार दो बार जीत दर्ज करने में सफल हो जाते हैं उसी तरह फुटबाल में भी एक दो टीम ऐसी है जो लगातार दो बार खिताब जीत जाती है। लेकिन ये टीमें या तो घरेलू फुटबाल की टीमें हैं या क्लब स्तर की। मैनचेस्टर यूनाईटेड और रियाल मैड्रिड ने लगातार दूसरे साल क्रमश: इंग्लिश प्रीमियर लीग और स्पेनिश लीग ला लीगा जीता है। इसी तरह भारत में पंजाब ने लगातार दूसरी बार संतोष ट्राफी पर कब्जा किया।
हालांकि फुटबाल की एंटी इनकंबेंसी राजनीति की एंटी इनकंबेंसी की तुलना में थोड़ी अलग है। राजनीति में चुनाव जितने निचले स्तर हो का मौजूदा विजय उम्मीदवारों के हारने का खतरा उतना ज्यादा होता है। यानी अगर कोई लहर न चल रही हो सांसदों की तुलना में विधायकों के हार का खतरा ज्यादा और विधायकों की तुलना में नगरपालिका के सदस्यों की हार का खतरा उससे भी ज्यादा होता है। वहीं फुटबाल में स्थिति ठीक विपरीत है। टूर्नामेंट जितना बड़ा हो मौजूदा चैंपियन के हार का खतरा उतना ज्यादा रहता है। विश्व कप चैंपियन के ऊपर सबसे ज्यादा खतरा, फिर यूरो कप चैंपियन, कोपा अमेरिका कप चैंपियन, चैंपियंस लीग चैंपियन और विभिन्न देशों घरेलू लीग के चैंपियन का नंबर आता है।
1 comment:
आपको पढ़कर अब कुछ कुछ खेलों की तरफ रुझान सा होने लगा है. :)
लिखते रहें.
Post a Comment