Friday, May 30, 2008

क्रिकेट के फुटबालीकरण के लिए तैयार हैं आप

आप इसे अच्छी खबर माने या बुरी खबर लेकिन अब क्रिकेट को फुटबाल के अंतरराष्ट्रीय सांचे में ढालने की पुरजोर तैयारी हो रही है। इसकी शुरुआत आईपीएल से हुई है और अब ज्यादातर देशों के क्रिकेट बोर्ड अपने यहां अपनी तरह का आईपीएल लाने की जुगत में हैं।

यूं तो इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान में घरेलू ट्वंटी 20 टूर्नामेंट का आयोजन पहले से हो रहा है लेकिन ये देश आईपीएल की तर्ज पर ज्यादा लोकप्रिय और कमाऊ ट्वंटी 20 लीग शुरू करना चाहते हैं। मुमकिन है कि इन देशों के बोर्ड भी बीसीसीआई की तर्ज पर फ्रेंचाइजी सिस्टम को तरजीह दें और बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों की खरीद बिक्री करे। इन देशों के लिए आईपीएल की नकल करने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। पहला ये कि इन जगहों पर क्रिकेट का पारंपरिक स्वरूप (टेस्ट व वनडे क्रिकेट) तेजी से लोकप्रियता खोता जा रहा है और दूसरा कारण यह है कि भारत और पाकिस्तान को छोड़कर ज्यादातर देशों में फुटबाल की लोकप्रियता क्रिकेट को नुकसान पहुंचा रही है।

लोकप्रियता के हिसाब से इंग्लैंड में तो फुटबाल पहले ही नंबर वन खेल है। पिछले फुटबाल विश्व कप में आस्ट्रेलिया के क्वालीफाई करने की वजह से इस कंगारू देश में फुटबाल तेजी से पैर पसार रहा है। अगला फुटबाल विश्व कप दक्षिण अफ्रीका में होने जा रहा है और यह वहां भी अपने लिए नए प्रशंसक बना रहा है। वैसे रग्बी दक्षिण का सबसे लोकप्रिय खेल है और उसके बाद क्रिकेट का नंबर आता है लेकिन वहां फुटबाल की बढ़ती लोकप्रियता का यह आलम है इससे रग्बी को भी खतरा महसूस होने लगा है।

बीसीसीआई भी इन देशों को आईपीएल की तरह का टूर्नामेंट लाने में पूरी मदद करने को तैयार है। आईपीएल के गठन में मुख्य भूमिका निभाने वाले पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन (पीसीए) के अध्यक्ष आईएस बिंद्रा कहते हैं यह क्रिकेट का वृहद स्वरूप होगा। तब सभी देशों में इंग्लिश प्रीमियर लीग फुटबाल की तर्ज पर ट्ंवटी 20 क्रिकेट लीग होगा और हम यूएफा चैंपियंस लीग की तरह क्रिकेट का चैंपियंस लीग शुरू कर सकेंगे।

बिंद्रा की ये बातें साफ इशारा करती हैं कि किस कदर क्रिकेट को फुटबाल के सांचे में ढालने की कोशिश की जा रही है। अगर ऐसा हुआ तो इसकी मार निश्चित रूप से सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर पड़ेगी। अगर हम ध्यान दें तो आज अंतरराष्ट्रीय फुटबाल खिलाड़ी अपना ज्यादातर वक्त अपने देश की टीम के बजाय अपने क्लब को देता है। इस साल यूरोपीयन फुटबाल में तहलका मचाने वाले क्रिस्टियानो रोनाल्डो का उदाहरण हमारे सामने है। ज्यादातर फुटबाल प्रशंसक उन्हें मैनचेस्टर यूनाईटेड के स्ट्राइकर के तौर जानता है न कि पुर्तगाल के मिडफील्डर के रूप में।

खैर फुटबाल की अंतरराष्ट्रीय संस्था फीफा ने इस व्यवस्था जानबूझकर अपनाया है क्योंकि फुटबाल में भाग लेने वाले प्रतिस्पर्धी देशों की संख्या काफी अधिक है और ऐसे में हर देशों के बीच दो पक्षीय मुकाबले का नियमित आयोजन करवा पाना मुमकिन नहीं है। साथ ही फीफा फुटबाल विश्व कप का चार्म बचाए रखने के लिए दो देशों के बीच ज्यादा आपसी मुकाबले होने भी नहीं देना चाहता है। इसी प्रयास के तह फीफा ओलंपिक की फुटबाल में स्पर्धा भाग लेने के लिए खिलाडि़यों की उम्र सीमा 23 वर्ष निर्धारित कर रखी है ताकि यह विश्व कप फुटबाल की बराबरी न कर सके।

अब यह गौर करने वाली बात है कि जब क्रिकेट के पास फुटबाल जैसे हालात नहीं हैं तो क्यों क्रिकेट के कर्ताधर्ता फुटबाल का अंधा अनुसरण करने की कोशिश में लगे हैं। क्या इससे वाकई क्रिकेट को फायदा होगा। क्रिकेट को हो न हो सभी देशों के क्रिकेट बोर्ड को जरूर होगा। ट्वंटी 20 लीग बुरा नहीं है लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाए कि इसका विकास टेस्ट व वनडे क्रिकेट की कीमत पर न हो।

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