Tuesday, May 27, 2008

क्या भारतीय त्रिमूर्ति को आईपीएल से फायदा हुआ?


इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का पहला सत्र अब समाप्त होने के कगार पर है। यह टूर्नामेंट क्रिकेट जगत में एक अभूतपूर्व क्रांति की तरह घटित हुआ। इसने साबित कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय मैचों के इतर होने वाले मुकाबले को भी दर्शक मिल सकते हैं और अच्छे क्रिकेटर सिर्फ वही नहीं होते जिनको राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका मिलता है। विभिन्न देशों के कई युवा व बुजुर्ग खिलाडि़यों ने शानदार खेल दिखाया लेकिन क्या इससे भारतीय त्रिमूर्ति सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली को कोई फायदा पहुंचा।

इन तीनों क्रिकेटरों ने पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका में हुए ट्वंटी 20 विश्व कप में खेलने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि क्रिकेट का यह प्रारूप युवाओं के ज्यादा अनुकूल है। अब सवाल यह उठता कि जब ये तीनों 15 दिनों तक चलने वाले उस टूर्नामेंट में खेलने का साहस नहीं जुटा पाए थे तो क्या सोचकर उन्होंने 59 दिनों तक चलने वाले आईपीएल में खेलने का फैसला किया। आईपीएल में इनके प्रदर्शन से यह बात तो साबित हो ही गई ट्वंटी 20 विश्व कप में न खेलने का इनका फैसला एकदम सही था। जरा सोचिए कि अगर उस विश्व कप में गौतम गंभीर की जगह सौरव गांगुली, रोबिन उथप्पा की जगह राहुल द्रविड़ और रोहित शर्मा की जगह सचिन तेंदुलकर खेलते तो क्या भारत विजेता बनता। तब क्या भारत को महेंद्र सिंह धोनी जैसा कप्तान मिलता। शायद नहीं।

सचिन तेंदुलकर चोट के कारण मुंबई इंडियंस के शुरुआती सात मैचों में नहीं खेल पाए थे। उन्होंने जो छह मैच खेले उसमें एक अर्धशतक के साथ कुल जमा 148 रन बना पाए। यही नहीं इन मैचों में खेलने की वजह से उनकी चोट फिर से उभर गई है और वह बांग्लादेश में होने वाली त्रिकोणीय सीरीज में नहीं खेलेंगे। अब बात राहुल द्रविड़ की करें तो टीम इंडिया की इस दीवार ने 13 मैचों में 30 की औसत से और 127.65 के स्ट्राइक रेट के साथ 360 रन बनाए हैं। वहीं प्रिंस ऑफ कोलकाता ने इतने ही मैचों में 29.08 की औसत और 113.68 के स्ट्राइक रेट के साथ 349 रन बटोरे। एक नजर में तो गांगुली और द्रविड़ का प्रदर्शन अच्छा प्रतीत होता है लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों ने इसमें से करीब 100-125 रन तब बनाए जब उनकी टीमों का आईपीएल से पत्ता कट चुका था।

गांगुली कहते हैं कि आईपीएल के प्रदर्शन पर चयनकर्ताओं को गौर करना चाहिए। चयनकर्ता जरूर इन प्रदर्शनों पर गौर करेंगे लेकिन इसमें भी उनके सामने गांगुली और द्रविड़ से पहले गौतम गंभीर (13 मैच, 523 रन, 43.58 औसत ), रोहित शर्मा (13 मैच 404 रन 36.72 औसत) और वीरेंद्र सहवाग (13 मैच 403 रन 36.63 औसत) के नाम आएंगे। महेंद्र सिंह धोनी, शिखर धवन, रोबिन उथप्पा, यूसुफ पठान, सुरेश रैना, स्वप्निल असनोदकर, अभिषेक नायर भी गांगुली और द्रविड़ से ज्यादा पीछे नहीं हैं और इन सभी बल्लेबाजों ने इन दोनों धुरंधरों की तुलना में बेहतर स्ट्राइक रेट के साथ रन बटोरे हैं। यह कहने की बिल्कुल जरूरत नहीं है कि क्षेत्ररक्षण के मामले में गांगुली-द्रविड़-सचिन बेहतर हैं या ये युवा क्रिकेटर।

सचिन भले ही टेस्ट मैचों में शेन वार्न को आगे निकलकर छक्के जड़ते थे लेकिन आईपीएल में उसी वार्न के आगे वह बंधे हुए नजर आए। गांगुली और द्रविड़ ने एक दो पारियां तेज जरूर खेली लेकिन उनकी यह तेजी ट्वंटी 20 के माफिक नहीं लगती। कुल मिलाकर सार यही निकलता है यह भारतीय त्रिमूर्ति भले ही टेस्ट और वनडे के शानदार खिलाड़ी रहे हों लेकिन ट्वंटी 20 उनके लायक नहीं है और टूर्नामेंट खत्म होने के बाद उन्हें यह जरूर सोचना चाहिए कि क्या आईपीएल में खेलकर उन्हें कोई फायदा हुआ (मैं आर्थिक लाभ की बात नहीं कर रहा हूं)।

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