Thursday, May 8, 2008
आईपीएल प्रीमियर तो है लेकिन लीग नहीं
इसमें कोई शक नहीं है कि इंडियन प्रीमियर लीग क्रिकेट जगत में एक अभूतपूर्व क्रांति की तरह है। इसने दुनिया भर के उम्दा क्रिकेटरों को ज्यादा कमाई का मौका उपलब्ध कराया। इसने इस खेल के प्रशंसकों को भी किसी टीम को अपना समर्थन देने के लिए ऐसा आधार मुहैया कराया जिसमें देश की प्रतिष्ठा दांव पर न लगी हो। इससे जीत पर मजा तो आता है लेकिन हार का वैसा गम नहीं होता जैसा कि किसी अंतरराष्ट्रीय मैच में अपने देश की हार पर होता है। इस टूर्नामेंट ने अभी अपना आधा सफर ही पूरा किया है लेकिन इतने कम समय में ही इसने भारतीय चयनकर्ताओं को भविष्य के लिए आधा दर्जन से ज्यादा उम्दा विकल्प उपलब्ध करवा दिए।
लेकिन ऊपर लिखी तमाम खूबियों के अलावा आईपीएल की कुछ खामियां भी हैं जिसे दूर कर पाना बेहद मुश्किल हो सकता है। ये खामियां ऐसी हैं जो इसके स्पोर्ट्स लीग होने पर ही सवाल उठाती है। इन्हीं में से एक खामी है रेलीगेशन सिस्टम का का न होना। रेलीगेशन सिस्टम किसी भी स्पोर्ट्स लीग की जान होती है। इसके तहत मुख्य लीग में फिसड्डी साबित हुई टीमों को अगले सत्र में दूसरे डिविजन में रेलीगेट कर दिया जाता है और दूसरे डिविजन में शीर्ष पर रही टीम मुख्य टूर्नामेंट में उसका स्थान ले लेती है। यह सिस्टम यूरोप की तमाम फुटबाल लीग, अमेरिकन फुटबाल, बास्केटबाल लीग [एनबीए] यहां तक हमारे देश में खेली जाने वाली रणजी ट्राफी क्रिकेट में भी लागू है।
इसका फायदा यह होता है कि कोई टीम अच्छा प्रदर्शन सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहती है कि वह टूर्नामेंट जीते बल्कि उसे इस बात का भी डर होता है कि कहीं वह दूसरे डिविजन में न खिसक जाए। लेकिन आईपीएल में ऐसा नहीं होगा। मान लीजिए कि अब तक अच्छा प्रदर्शन न कर पाने वाली बेंगलूर रॉयल चैलेंजर्स या हैदराबाद डक्कन चार्जर्स अगले दो-तीन मैच और हारकर सेमीफाइनल में पहुंचने की होड़ से बाहर हो जाती है तो अंतिम के चार-पांच मैचों में कौन सी बात उन्हें अच्छा प्रदर्शन करने पर मजबूर करेगी। अगर रेलीगेशन सिस्टम होता तो इसकी नौबत आने की कोई आशंका नहीं होती और कोई भी टीम सेमीफाइनल की होड़ से बाहर होने के बावजूद अगले साल मुख्य टूर्नामेंट में बचे रहने के लिए अच्छा खेल दिखाती या दिखाने की कोशिश करती।
अब आईपीएल में सकेंड डिविजन है ही नहीं तो रेलीगेशन सिस्टम का सवाल ही नहीं उठता है। अगर कुछ नई टीमों को जोड़कर सकेंड डिविजन बनाने की कोशिश भी की जाए तो मौजूदा फ्रेंचाइजी इसे सफल नहीं होने देंगे क्योंकि उन्होंने भारी कीमत चुकाकर 10-10 सालों के लिए टीम खरीदी है। वह किसी भी सूरत में ऐसी स्थिति नहीं चाहेंगे जिससे उनकी टीम पर मुख्य टूर्नामेंट से बाहर होने का खतरा मंडराए।
रेलीगेशन की तरह ही आईपीएल में एक और बड़ी खामी है। वह है इसके प्रारूप में सेमीफाइनल और फाइनल मैच का प्रावधान। यह ऐसा प्रावधान है जो टीमों को शीर्ष स्थान के लिए नहीं बल्कि किसी तरह अंतिम चार में जगह बनाने के लिए प्रेरित करेगी। दुनियां की किसी भी नामी स्पोर्ट्स लीग का अवलोकन करें तो आप पाएंगे कि वहां सेमीफाइनल और फाइनल का प्रावधान नहीं है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि टीमें लीग मैचों को ही पूरी गंभीरता से ले और हर लीग मैच इस भाव के साथ खेला जाए मानो यही सेमीफाइनल और फाइनल है।
वहां टीमों को यह पता होता है कि अगर टूर्नामेंट जीतना है तो हर हाल में शीर्ष पर आना होगा अंतिम चार में आने से कोई फायदा नहीं। हर तीन या चार साल पर होने वाले मैचों में सेमीफाइनल और फाइनल होना तर्कसंगत है लेकिन हर साल होने वाले आयोजन में इसका प्रावधान लीग मैचों की अहमियत को कम कर सकता है।
इसी तरह आईपीएल में एक ही शहर की दो टीमों के बीच होने वाली भिड़ंत का मजा भी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय कैलेंडर व्यस्त होने की वजह से आईपीएल में टीमों की संख्या सिर्फ आठ रखी गई है ताकि कम समय में टूर्नामेंट निबटाया जाए। इससे भारत के ही कई अहम शहरों को इसमें भाग लेने का मौका नहीं मिल पाया तो एक ही शहर की दो टीमों की बात करना ही बेमानी है।
खैर शुरुआत में तो हर आयोजन अधूरा सा दिखता है और समय के साथ इसमें सुधार होता है। हम यही उम्मीद कर हैं कि आईपीएल भी धीरे-धीरे खुद को सुधारेगा और स्पोर्ट्स लीग की जो अंतरराष्ट्रीय मान्यता है उस पर खरा उतरेगा।
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3 comments:
अच्छी और सही जानकारी . फिलहाल तो यह शुरू ही हुआ है देखते हैं इसमे आने वाले सालो में कितनी और बदलाव कि गुंजाईश है जिसे प्रबंधक करते भी हैं या नही
एक और गुजारिश पारा जब दे तो एक जगह छोड़ दे जिससे पाठक को पढने में आसानी हो और उसे बोहिल सा न लगे
उपयोगी जानकारी दी है आपने....वाकई आपकी बात सही लग रही है कि आखिर फ़िसड्डी टीम को भी और बेहतर खेलने के लिये इस टुर्नामेंट में मोटीवेशन फ़ैक्टर गायब है....खैर अभी ये पहला साल है धीरे धीरे इसके फ़ॉरमेट में शायद बदलाव भी आता रहेगा.....पर आपने लिखा अच्छा है
सही जानकारी। आई.पी.एल मे हर टीम को एक फायदा ये है की हर टीम को इनाम जरुर मिलेगा। हाँ पहले नम्बर की टीम को तो जाहिर है ज्यादा और आखिरी नम्बर वाली टीम को कम। :)
मतलब पैसे की कमी नही।
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