Thursday, April 24, 2008

कप्तानी सबके बस की बात नहीं

इंडियन प्रीमियर लीग ने अपनी शुरुआत के बाद महज छह दिनों में ही कई महत्वपूर्ण संकेत दे दिए। पहला तो यह कि क्रिकेट का यह सबसे छोटा और मनोरंजक संस्करण टेस्ट व वनडे की ही तरह अपने लिए लंबी उम्र लेकर आया है। दूसरा और महत्वपूर्ण संकेत यह है अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट न होने के बावजूद यहां दो टीमों के खिलाड़ियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और दर्शकों के रोमांच में कोई कमी नहीं आई है। इस प्रतियोगिता में खेलने वाला हर खिलाड़ी अपनी टीम की जीत के लिए पूरा प्रयास करता हुआ नजर आ रहा है। माइक हसी और मैथ्यू हेडन जैसे बल्लेबाज ब्रेट ली और जेम्स होप्स ( जो राष्ट्रीय टीम में उनके साथी हैं) की गेंदों को सीमारेखा के पार पहुंचाने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं तो हरभजन सिंह राहुल द्रविड़ को आउट कर कुछ उतने ही खुश दिख रहे हैं जितना कि वह एंड्रयू सायमंड्स और रिकी पोंटिंग को आउट कर खुश होते थे।

इस टूर्नामेंट ने जो तीसरा संकेत दिया उस और ध्यान देना सबसे जरूरी और रोचक है। इसने इतना तो साबित कर ही दिया कि क्रके्ट किसी भी रूप में क्यों न खेला जाए कुछ बातें कभी नहीं बदलती। सहवाग टेस्ट खेलें, वनडे खेलें या ट्वंटी २० उनका आक्रामक रवैया हमेशा बरकरार रहता है। श्रीसंथ को आप दुनिया के किसी भी मैदान में पटक दें उनकी हरकतें कैमरे को अपनी ओर खींचनें में कामयाब हो ही जाती है। यही बात आईपीएल की आठ टीमों के कप्तानों पर भी लागू होती हैं। यूं तो आईपीएल के इस सत्र में कई मैच खेले जाने बाकी हैं लेकिन अब तक हुए आठ मैचों के आधार पर ही आप यह सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन अच्छा कप्तान है, कौन औसत और कौन फिसड्डी। कहने के लिए तो डेक्कन चार्जर्स की टीम में सबसे ज्यादा विध्वंसक खिलाड़ी शामिल हैं लेकिन घटिया रणनीति ने दोनों मैचों में उनकी लुटिया डुबो दी। वेणुगोपाल राव जो ऊंचे शॉट लगाने की बजाय अपनी पारी को धीरे-धीरे मजबूती प्रदान करते हैं उन्हें वीवीएस लक्ष्मण ने सलामी बल्लेबाज के तौर पर भेजा और जब गिलक्रस्ट आउट हो गए तो खुद वेणुगोपाल के साथ मिलकर टुक-टुक करने क्रीज पर आ गए। कुल जमा १२० गेंदों की पारी में दो बल्लेबाज मिलकर २०-२५ गेंद जाया कर दें तो आप वैसे ही मुकाबले से बाहर हो जाते हैं। लक्ष्मण ने यह गलती तब की जब उनके पास शाहिद अफरीदी जैसा आक्रामक बल्लेबाज मौजूद था।

लक्ष्मण की तरह ही किंग्स इलेवन पंजाब के कप्तान युवराज सिंह भी रणनीति बनाने में जूझते नजर आ रहे हैं। जब विपक्षी बल्लेबाज उनके गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाने लगता है तो पंजाब के इस पुत्तर के होश फाख्ता हो जाते हैं। उन्हें यह नहीं सूझता कि किस फील्डर को कहां रखें और किस गेंदबाज को आक्रमण पर लाएं। मुंबई इंडियंस के कार्यवाहक कप्तान हरभजन सिंह भी इस जिम्मेदारी के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं।

वहीं शुरुआती मैचों में सफल कप्तानों की ओर नजर डालें तो सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी ने दिखा दिया क्यों उनकी गिनती भारत के सबसे बेहतरीन कप्तानों में होती है। इन दोनों के अलावा वीरेंद्र सहवाग ने भी अपनी नेतृत्व क्षमता से सबको कायल किया है। इसकी झलक उन्होंने खिलाड़ियों की नीलामी में ही दिखा दी थी। हालांकि उस वक्त वे आस्ट्रेलिया में थे लेकिन उन्होंने वहां से ही अपने फ्रेंचाइजी जीएमआर को अपनी पसंद बता दी थी। नीलामी में जहां सभी टीमों ने एक से एक धाकड़ बल्लेबाजों को अपना हिस्सा बनाने के लिए पैसे खर्चे तो दिल्ली डेयरडेविल्स ने कसी हुई लाइन लेंथ से गेंदबाजी करने वाले दिग्गजों को अपनी टीम में शामिल किया। सहवाग की सफलता इस बात की ओर भी इशारा करती है कि धोनी को भारतीय टीम की कप्तानी के मामले में जिस व्यक्ति से सबसे बड़ा खतरा है वह युवराज नहीं बल्कि नजफगढ़ का सुल्तान सहवाग है।

इस आलेख में दो अन्य कप्तानों का जिक्र करना भी बेहद जरूरी है। ये नाम हैं राहुल द्रविड़ औऱ शेन वार्न। बेंगलोर रॉयल चैलेंजर्स के कप्तान के तौर पर भी द्रविड़ वैसे ही नजर आ रहे हैं जैसा वे भारतीय टीम की कमान संभालते वक्त नजर आते थे, यानी एक औसत कप्तान। जहां तक शेन वार्न का सवाल है तो दो मैचों में एक में जीत और एक में हार के स्कोर लाइन के साथ उन्होंने यह जरूर साबित किया कि भले ही वह बतौर कप्तान सहवाग से कमतर हों लेकिन युवराज से कहीं अच्छे हैं।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा मूल्यांकन, जारी रहे।

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