Tuesday, April 22, 2008

क्या प्रियंका के गांधीवाद से पिघलेगा लिट्टे?

गिरीश निकम की कलम से

कुछ सप्ताह पहले राहुल गांधी कर्नाटक में थे जहां कुछ पत्रकारों के साथ उनकी एक अनौपचारिक बैठक हुई। इनमें से एक पत्रकार ने प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश पर उनकी राय जाननी चाही। उनका यह सवाल निश्चत रूप में गांधी परिवार के बारे में हो रही मीडिया रिर्पोटिंग से प्रभावित था साथ ही यह सवाल परोक्ष रूप से राहुल और प्रियंका के बीच मौजूद कथित प्रतिद्वंदिता के बारे में भी था। राहुल (जिन्होंने ऑफ द रिकार्ड हुए इस बैठक में खुल कर बात की और कई दिल भी जीते) ने उन्हें बताया कि कैसे ज्यादातर लोगों ने इस मामले में बिल्कुल गलत समझ विकसित कर ली है। उन्होंने कहा, 'आपलोगों को इस बात का बिल्कुल आभास नहीं है कि हमलोग (प्रियंका, वो और उनकी मां) अपनी जिंदगी में किन हालातों से गुजरे हैं।' वह निश्चत तौर पर अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की नृशंस हत्या की बात कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'हमलोग एक दूसरे के बहुत करीब रहे हैं औऱ ऐसे में प्रतिद्वंदिता का तो सवाल ही नहीं उठता।'

अपने पिता की हत्या के बाद वे किस सदमें से गुजरे, किस तरह उनकी मां ने स्थिति को संभाला औऱ कैसे इसके बाद वह, उनकी बहन और उनकी मां एक-दूसरे के काफी करीब आ गए, राहुल इसी बारे में कहना चाह रहे थे। मीडिया ने गांधी परिवार के इस पहलू को कमोबेश किनारे रखते हुए उनकी राजनीति औऱ सत्ता की खोज पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। इसलिए अगर राहुल द्वारा अपने परिवार की मनःस्थित के बारे में कही गई बातों को ध्यान में रखते हुए कोई प्रियंका गांधी की पिछले महीने की गई वेल्लोर जेल यात्रा को देखेगा तो वह आसानी से अंदाजा लगा पाएगा कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। वास्तव में जब राहुल पत्रकारों से बात कर रहे थे तब प्रियंका अपने पिता के हत्यारों के समूह की सदस्य नलिनी से मिलकर आ चुकी थीं। इसलिए जब वह पत्रकारों के सामने बोल रहे थे तब यह बात उनके दिमाग में कहीं न कहीं जरूर रही होगी क्योंकि तब तक प्रियंका नलिनी से मुलाकात के अपने अमुभव उनके साथ बांट चुकी थी।

इस बात का श्रेय गांधी परिवार को जाता है कि उसने इस मुलाकात के जरिए कोई प्रचार हासिल करने की कोशिश नहीं की। यह बात लोगों के सामने तब आई जब नलिनी के वकील ने अदालत से दया की उम्मीद में इसका खुलासा किया।

अब यह गौर करने की बात है कि वह क्या वजह थी जिसने प्रियंका को 38 साल की नलिनी से मुलाकात के लिए प्रेरित किया। इस मुलाकात के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है। खुद प्रियंका ने भी बयान जारी कर कहा कि वह पिता की हत्या के बाद मानिसक शांति पाने के प्रयास में निलिनी से मिली। राहुल ने अपनी बहन के इस अभूतपूर्व कदम का विरोध नहीं किया लेकिन यह साफ किया कि इस मामले में उनकी सोच अलग है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वह इस तरह की मुलाकात की कोई योजना नहीं बना रहे हैं। हालांकि राहुल और प्रियंका दोनों ने कहा कि वे घृणा, क्रोध और हिंसा को अपनी जिंदगी पर हावी नहीं होने देना चाहते हैं। प्रियंका ने इसमें यह भी जोड़ा कि यह पूरी तरह व्यक्तिगत मुलाकात थी जिसकी पहल उन्होंने खुद की थी। उन्होंने कहा कि पिता की हत्या के बाद शांति प्राप्त करने का उनका तरीका है और इसे सही अर्थों में समझा जाए। सोनिया ने इस मसले पर अब तक चुप्पी साध रखी है हालांकि उन्होंने अपने दुःस्वप्न को अपनी बेटी प्रियंका की तुलना में बहुत पहले ही तब दफना दिया था जब उन्होंने नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करवाया था।

ऐसे में जबकि इस विपदाग्रस्त परिवार के तीनों सदस्यों ने इस मसले पर असाधारण मानवता का परिचय दिया है यह दुखद है कि मीडिया का एक तबका इसकी सराहना करने के बजाय इस खबर के मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया से पिछड़ने के कारण खार खा कर इस मुलाकात की वैधता में कोर-कसर निकालने की कोशिश कर रहा है। दुर्भाग्य से गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी की इस धरती पर घृणा और हिंसा ने गहरी पैठ जमा ली है। ऐसे समय में जब कोई व्यक्तिगत विपदा से उबरने के लिए और अपनी नफरत की भावनाओं को खत्म करने के लिए हत्यारे से मिलकर पूरा जतन करने की कोशिश करता है तो उसके इस प्रयास को नकारात्मक और संशय की दृष्टि से देखा जाता है।

इस मुलाकात पर आई कुछ प्रतिक्रियाएं तो काफी निराशाजनक थी जिसमें भारतीय जनता पार्टी की ओर से आई प्रतिक्रिया सबसे चौंकानेवाली थी। भाजपा के पार्टी प्रवक्ता ने बयान दिया कि 'प्रियंका नलिनी से क्यों मिली यह समझ से बाहर है' । निश्चित रूप से ऐसी पार्टी जो अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ द्वारा प्रचारित नफरत के खाद-बीज पर पली-बढ़ी हो वह ऐसे किसी प्रयास को नहीं समझ सकती जो नफरत, घृणा और हिंसा को समाप्त करने के लिए किए जाते हों।

यह समझना जरूरी है कि नलिनी से मिलने का फैसला कर प्रियंका कोई राजनीतिक लाभ कमाने की कोशिश नहीं कर रही थी। यह एक बेटी द्वारा पिता की हत्या के बाद शांति प्राप्त करने का तरीका था। हालांकि उन्होंने अनजाने में ही सही एक शसक्त राजनीतिक बयान दे दिया कि उनका परिवार और वह खुद किसी को अपने पिता की हत्या पर राजनीतिक रोटिंया नहीं सेंकने देंगी। हालांकि यह अजीब बात है कि कभी निष्कपट रहीं सोनिया गांधी ने अर्जुन सिंह और उनके सहयोगियों को इंद्र कुमार गुजराल की संयुक्त मोर्चा सरकार को केवल इस तर्क के आधार पर गिराने दिया कि डीएमके के नेता राजीव गांधी हत्याकांड में संदिग्ध थे। बहरहाल बाद में विवेकपूर्ण सोनिया ने अपनी भूल सुधारी और डीएमके के साथ गठबंधन किया। अब ऐसा प्रतीत होता है कि सोनिया ने डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के साथ अच्छा तालमेल स्थापित कर लिया है।

नलिनी मामले में तो सोनिया और उनकी दोनों संतानों ने विशाल हृदय का परिचय जरूर दिया लेकिन राजीव हत्याकांड के बाद उनसे एक बड़ी भूल भी हुई। राजीव के साथ 1991 के मई की रात जान गंवाने वाले 15 लोगों के परिवार वालों की मदद के लिए गांधी परिवार हाथ बढ़ाने में विफल रहा। हालिया प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार गांधी परिवार के किसी भी सदस्य ने न तो उनकी मदद करने की और न ही उन तक पहुंचने की कोशिश की। उनमें से कुछ तो कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता थे जिनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार की हालत बेहद खराब हो गई लेकिन इसके बावजूद किसी ने उनकी सुध नहीं ली। यह आश्चर्य की बात है सोनिया और उनकी दोनों संतानों ने इस पहलु को अनदेखा कर दिया। उम्मीद है कि अब वे अपनी गलती को सुधारने की कोशिश करेंगे। हालांकि राजीव की हत्या के बाद गांधी परिवार का खुद शोकाकुल होना इस अनदेखी के पीछे बड़ा कारण हो सकता है।

इस भूल के बावजूद अब प्रियंका ने और पहले सोनिया ने दुनिया को दिखा दिया कि नफरत और अस्वस्थ मानसिकता को खुद के अंदर पनपाना घृणित कार्यों को रोकने के लिए उचित समाधान नहीं हो सकता, चाहे मसला व्यकितगत हो या राजनैतिक। उम्मीद है कि राजीव हत्याकांड की साजिश रचने और इसे कार्यान्वित करने वाला लिट्टे प्रियंका के कदम से पिघलेगा और इसमें अपनी भूमिका को स्वीकारते हुए माफी मांगेगा। यह इस दुखदाई मुद्दे का उचित समापन होगा और हम एक राष्ट्र के तौर पर गांधीगण एक परिवार के तौर पर अपने जख्मों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ पाएंगे। इस आलेख की मूल अंग्रेजी प्रति पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

1 comment:

Manas Path said...

लिट्टे की भी अपनी समस्याएं है.

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