Thursday, December 25, 2008

टीम इंडिया सबसे अच्छी टीम नही, अच्छी टीमों में से एक है

ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घरेलू टेस्ट सीरीज में मिली जीत के बाद इस बात की चर्चा काफ़ी तेज हो गई कि भारत टेस्ट क्रिकेट में दुनिया कि सबसे अच्छी टीम है. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मिली जीत ने इस धारणा को और भी बल दिया. लेकिन क्या असल में ऐसा है.

वर्ष २००८ को भारतीय क्रिकेट के सबसे अच्छे सालों में गिना जा रहा है. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वर्ष हमने पाँच टेस्ट सीरीज़ खेली जिसमे २ में जीते २ में हारे और एक बराबरी पर छूटी. जो २ सीरीज़ हमने जीती वह अपने घर में जीती. ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका में हमें हार ही मिली. दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ घरेरू सीरीज हम जीत नही पाए. यह १-१ से बराबर रही. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हमने टेस्ट क्रिकेट में वैसा ही प्रदर्शन किया जैसा पहले करते आ रहे थे. घर में जीते और बाहर हारे. हाँ अब हम विदेशी जमीनों पर पहले कि तुलना में ज्यादा अच्छा खेल दिखा रहे हैं.

बहुत लोगों का तर्क हो सकता है कि जो २ सीरीज हमने गवाई उसमे महेंद्र सिंह धोनी कप्तान नही थे. लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ के अगर इंग्लैंड के खिलाफ मोहाली कुंबले में कप्तान होते और वो मैच अनिर्णीत होता तो सब यही कहते कि अगर धोनी होता तो वह जीत के लिए खेलता. लेकिन धोनी ने भी मैच बचने को प्राथमिकता दी न कि २-० से जीत को. इसमे गलती धोनी कि नही. इसमे दोष उस भारतीय क्रिकेट परम्परा कि है जो आक्रमण से ज्यादा रक्षा में यकीन करता है. मेरे कहने का यही मतलब है कि श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया में अगर कप्तान कोई दूसरा भी होता तो परिणाम यही आते.
आज ऑस्ट्रेलिया कमजोर हो गई है तो इसलिए कि उसे मक्ग्राथ और वार्ने का विकल्प नही मिला. ये दोनों टेस्ट क्रिकेट में उसके सबसे बड़े मैच विनर थे. भारत का सबसे बड़ा मैच विनर कुंबले सन्यास ले चुका है और राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर भी जल्दी ही जा सकते हैं.

लोग फिर कह सकते हैं कि कुंबले के संन्यास और द्रविड़ के ख़राब फॉर्म के बावजूद हमने मैच जीते. लेकिन सनद रहे कि हमने यह मैच भारत में जीते. भारत कि पिचों पर हरभजन सिंह, अमित मिश्रा भी विकेट लेते हैं और यहाँ धोनी और युवराज भी रन बनाते हैं. लेकिन ये गेंदबाज और ये बल्लेबाज विदेशी पिचों पर टेस्ट क्रिकेट में अब तक कोई कमाल नही दिखा सके हैं.
इस साल भारत में मिली जीतों के अलावा हमें २ और जीत मिली एक पर्थ में और एक श्रीलंका में. इन दोनों जगहों पर मिली सफलता में एक फैक्टर कॉमन रहा वह है वीरेंदर सहवाग. सहवाग ने पर्थ में ज्यादा रन तो नही बनाये लेकिन अच्छी शुरुआत दी. और ३ कीमती विक्केट भी झटके. श्रीलंका में भी उनके दोहरे शतक ने हमारी नैया पार लगाई. निसंदेह सहवाग एइसे खिलारी हैं जो अगर चल गए (अक्सर वो चलते भी हैं) तो वह दुनिया के किसी आक्रमण की दुनिया कि किसी भी पिच पर बखिया उधेर सकते हैं और आपके लिए मैच जीत सकते हैं. लेकिन सिर्फ़ सहवाग के बल पर आप नंबर एक नही हो सकते.

हो सकता है आप भारतीय क्रिकेट टीम के बहुत बारे प्रशंसक हों और आप कहें की हमारे पास गौतम गंभीर, ज़हीर खान, इशांत शर्मा जैसे शानदार खिलाड़ी भी हैं. बिल्कुल ये शानदार और विश्वस्तरीय खिलारी हैं. लेकिन क्या ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और श्रीलंका के पास ऐसे ही शानदार खिलाड़ी नही हैं? बिल्कुल हैं. और यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया कि बादशाहत ख़त्म होने के बाद कोई भी टीम यह दावा नही कर सकती वो नंबर १ है.

अब क्रिकेट में सत्ता बहुकेंद्रित हो गई है. और अलग-अलग कंडिशन्स में अलग-अलग टीमें नंबर एक प्रतीत होगी. इसमे हमारी टीम भी बहुत अच्छी है और वह दुनिया कि ३-४ बेहतरीन टीमों में से एक है.

1 comment:

वेद रत्न शुक्ल said...

'ण' को 'न' कहना नहीं छोड़ोगे। सुधर जाओ। क्या हाल है? खेल खासकर क्रिकेट का विश्लेषण तो आप बेहतरीन करते ही हैं।

ब्लोग्वानी

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