Monday, July 7, 2008

चींटी, मोहम्मद गौरी और अब राफेल नडाल


बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि मोहम्मद गौरी जब पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में बुरी तरह पराजित होने के बाद मायूस होकर बैठा था तो उसने देखा कि एक चींटी बार-बार दीवार पर चढ़ने का प्रयास कर रही है। कई बार चींटी ने अपनी चढ़ाई लगभग पूरी कर ली लेकिन वह फतह करने से पहले फिसल कर गिर जाती थी। लेकिन इससे चींटी का हौसला नहीं टूटा और वह आखिरकार दीवार पर चढ़ ही गई।

चींटी के इस हौसले ने गौरी की हिम्मत बढ़ाई और वह भी आखिरकार पृथ्वीराज को हराने में कामयाब रहा। उस चींटी और मोहम्मद गौरी की ही तरह अथक प्रयास के बाद कामयाबी की एक और दास्तान स्पेन के टेनिस खिलाड़ी राफेल नडाल ने भी लिखी है। वर्ष 2006 और 2007 में भी वह टेनिस के सबसे प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट विंबलडन की पुरुष एकल स्पर्धा के फाइनल में पहुंचे थे लेकिन दोनों ही बार उन्हें ग्रास कोर्ट के बादशाह रोजर फेडरर ने टिकने नहीं दिया। कोई और खिलाड़ी होता तो शायद हौसला हार चुका होता लेकिन नडाल भी उस चींटी और गौरी की तरह जिद पर अड़ गए।

रविवार को उन्होंने विंबलडन इतिहास के सबसे लंबे फाइनल मुकाबले में सरताज फेडरर को बेताज कर ही दिया। इस मैच में भी ऐसे मौके आए जब लगने लगा कि शायद फेडरर फिर बाजी मार जाएं लेकिन नडाल अपने प्रतिद्वंदी की आभा के सामने फीके नहीं पड़े। जिस तरह गौरी ने पृथ्वीराज की कमजोरी पर हमला किया उसी तरह नडाल ने भी फेडरर की कमजोरी यानी बैकहैंड को निशाना बनाया। यह सबको मालूम है कि फेडरर के फॉरहैंड को झेलना आसान नहीं है इसलिए नडाल ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि स्विट्जरलैंड का यह चमत्कारी खिलाड़ी ज्यादा से ज्यादा बैकहैंड खेलने पर मजबूर हो जाए।

मैच के दौरान बारिश भी हुई। विंबलडन में पिछले पांच साल का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि अगर फेडरर अच्छा न खेल पा रहे हों और बारिश हो जाए यह उनके लिए फायदे का सौदा साबित होता है। चार साल पहले इसी विंबलडन के फाइनल में फेडरर के सामने अमेरिका के एंडी रोडिक थे। रोडिक ने पहला सेट जीत लिया और दूसरे में भी वह आगे थे कि तभी बारिश शुरू हो गई। बारिश के बाद जब मैच शुरू हुआ तो फेडरर बिल्कुल बदले हुए नजर आए। उन्होंने फिर अमेरिकी खिलाड़ी को दूसरा मौका नहीं दिया।

इतिहास को खुद को दोहराने की बड़ी जिद होती है और कल भी बारिश के बाद जब खेल शुरू हुआ तो लगा कि इतिहास एक बार फिर अपनी यह जिद पूरी कर लेगा। बारिश से पहले नडाल दो सेट जीत चुके थे लेकिन बारिश के बाद के खेल में फेडरर ने लगातार दो सेट जीतकर मैच में जबरदस्त वापसी कर ली। खैर अंत में नडाल की खिताब जीतने की जिद इतिहास की जिद पर भारी पड़ी और विंबलडन के छह साल बाद नया चैंपियन मिला।

भले ही फेडरर की यह हार उनके लिए और उनके प्रशंसकों के लिए काफी दुखदायी रही हो लेकिन टेनिस के लिए यह बहुत अच्छा हुआ। पिछले दो साल से फेडरर जिस तरह का प्रदर्शन कर रहे थे उससे कोर्ट पर एक खिलाड़ी की मोनोपोली बनती जा रही थी। हालांकि नडाल फ्रेंच ओपन जरूर जीत रहे थे लेकिन बाकी जगहों पर सिर्फ फेडरर और फेडरर ही थे। खास तौर पर ग्रास कोर्ट पर होने वाले टूर्नामेंटों में तो ऐसा लगता था कि बाकी खिलाड़ी महज औपचारिकता पूरी करने आते हैं।

अब जब घास पर फेडरर की बादशाहत छिन चुकी है तो अगले वर्ष क्ले पर नडाल को भी फेडरर से और कड़ी चुनौती मिलेगी। फेडरर फ्रेंच ओपन (जिसे नडाल का गढ़ माना जाता है) जीतकर हिसाब बराबर करने की कोशिश करेंगे। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि नडाल की यह जीत टेनिस में प्रतिद्वंदिता को और बढ़ाएगी। वैसे यह प्रतिद्वंदिता सिर्फ फेडरर और नडाल के बीच तक ही सीमित नहीं रहने वाली है। सर्बिया के नोवाक जोकोविच पिछले एक-डेढ़ साल से इन दोनों की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं। साथ ही रूस के मरात साफिन भी लय में लौटने लगे हैं। जब साफिन रौ में होते हैं तो उन्हें रोक पाना अच्छे अच्छों के बस के बाहर की बात होती है।

2 comments:

Manish Kumar said...

shukriya is lekh ke liye

kal match dekh nahi paya par ye suna ki behad sangharshpoorna match hua tha.

Ab dekhna ye hai ki kya ye sachmuch Federer ki baadshahat ka ant hai ya wo phir se jordaar wapasi karenge.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।

बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।

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