Saturday, August 15, 2009

हर तरफ हार ही हार

15 अगस्त की पूर्व संध्या पर सायना नेहवाल से बड़ी उम्मीदें थी। सोच रहा था कि भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी दूसरी वरीयता प्राप्त चीनी खिलाड़ी लिन वांग से क्वार्टर फाइनल मैच जीत जाएगी तो पांच-छह कॉलम में सजा-धजा कर इस मैच की लीड खबर बनाऊंगा ताकि स्वतंत्रता दिवस पर जब पाठक खेल का पन्ना देखे तो उनका हर्षोउल्लास दोगुना हो जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इससे पहले मिश्रित युगल में वी दीजू और ज्वाला गुट्टा की जोड़ी भी हार कर टूनार्मेंट से बाहर हो चुकी थी। इस तरह हैदराबाद में चल रही विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में भारत की चुनौती समाप्त हो गई और इसके साथ ही इस टूर्नामेंट से स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर किसी सकारात्मक खबर मिलने की उम्मीद भी।

इसके बाद सोचा किसी और खेल में कोई अच्छी खबर हाथ लग जाए ताकि आजादी का जश्न मनाने वाले अपने पाठकों की खुशी में इजाफा कर सकूं। लेकिन बाकी खेलों में भी निराशाजनक परिणाम ही हाथ लगे। शतरंज में तानिया सचदेव बांग्लादेशी खिलाड़ी से हार गईं तो टेनिस में प्रकाश अमृतराज एकल से बाहर हो गए। हालांकि प्रकाश .युगल में जीते। वह भी पाकिस्तान के ऐसाम उल हक कुरैशी के साथ। लेकिन आजादी के पावन मौके पर भारत-पाक संयुक्त कामयाबी की खबर का कनसेप्ट कुछ लगों को कुछ जमा नहीं। वैसे भी प्रकाश की जोड़ी सेमीफाइनल में ही पहुंची कोई खिताब थोड़े ही जीत लिया था (वैसे सायना भी जीतती तो सेमीफाइनल में ही पहुंचती)। गोल्फ के मैदान से भी अच्छी खबर नहीं आई। भारतीय गोल्फर जीव मिल्खा सिंह निराशाजनक प्रदर्शन के साथ संयुक्त 67वें स्थान पर ही रहे। टेबल टेनिस में भी भारतीय टीम की हार की खबर थी।

मन बड़ा दुखी हुआ कि आजादी दिवस पर भारतीयों की हार की खबरों से परिपूर्ण पन्ना देखकर हमारे पाठकों पर क्या बीतेगी। शिक्षा भी ऐसी ही मिली है कि ऐसे दिनों पर सकारात्मक खबरों को तरजीह दो। लेकिन कोई सकारात्मक खबर हो तब न।

काम खत्म करने के बाद बुझे मन के साथ घर लौटा और इस बात पर बार-बार कोफ्त होता रहा कि एक भी सुखद खबर नहीं लगा पाया। घर पर अपने 15 वर्षीय साले (ब्रदर इन लॉ) को यह बात बताई। नींद से परेशान साले ने बात को आगे न बढ़ाने के मूड में एक बात कही कि इन खेलों में हम जीतते ही कब थे जो आज जीत जाते। यह कह कर वह तो सो गया लेकिन उसकी बात बहुत हद तक सच्ची भी है। इन खेलों क्या कुल मिलाकर सभी खेलों में हम जीतते ही कब थे जो आज जीत जाते। इक्का-दुक्का जीत कुछ इक्का दुक्का खेलों में मिलती रही है लेकिन अपने यहां तो खेल के मैदान में सफलता इस कदर कम है कि कांस्य विजेता (तीसरा स्थान पाने वाले) भी हीरो से कम नहीं। और जब तक ये कांस्य विजेता नहीं थे तब तक चौथा स्थान हासिल करने वाले भी हीरो थे। कृप्या मुझे यह याद न दिलाएं कि एक स्वर्ण भी मिला था। लेकिन हम खेल में तब कामयाब होंगे जब हमारे पास इतने स्वर्ण विजेता हों कि कईयों के नाम याद न आए। वाकई खेलों की दुनिया में अभिनव है भारत। बिना मजबूत तर्क और वजह के आश्चर्यजनक रूप से नाकामयाब।

2 comments:

वेद रत्न शुक्ल said...

बिना किसी ठोस वजह और तर््क के ही हम खेलों में असफल हैं?

बिक्रम प्रताप सिंह said...

बिल्कुल इससे कम सुविधा और लागत और इससे भी खराब सिस्टम से गुजर कर कई देश हमसे बहुत आगे है।

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