हमारी क्रिकेट टीम ट्वंटी 20 विश्व कप के सेमीफाइनल की होड़ से बाहर हो गई। क्या इससे रातों-रात टीम इण्डिया गई गुजरी हो गई? क्या धोनी चतुर कप्तान से फिसड्डी कप्तान हो गए? क्या गौतम गम्भीर, रोहित शर्मा, जहीर खान, हरभजन सिंह जैसे क्रिकेटर अब क्रिकेटर न हो कर कबाड़ हो गए? क्या अब भारतीय टीम को वापस देश लाने के बजाय प्रशांत महासागर में डूबो देना चाहिए (करीब 15 साल पहले विशन सिंह बेदी शारजाह में भारतीय टीम की हार पर ऐसा कहा था) ?
उपरोक्त लिखे किसी जवाल का जवाब हां नहीं है। और गनीमत है कि जो इनका जवाब हां में देते हैं वो इस देश की क्रिकेट नहीं चलाते। भारतीय टीम हारी जाहिर है खराब खेली इसलिए हारी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि टीम ही खराब हो गई। क्रिकेट फॉर्म का खेल है और दुर्भाग्य है हमारे कई खिलाड़ी एक साथ आउट ऑफ फॉर्म हो गए। गम्भीर टच में नहीं थे, सहवाग के अचानक लौटने से रोहित को ओपनिंग करनी पड़ गई। रैना पहली बार इंग्लैण्ड गए थे। जहीर-ईशांत अपनी लय में नहीं थे (याद रखे कुछ ही दिन पहले इन्हें दुनिया की सबसे खतरनाक तेज गेंदबाज जोड़ी कहा जा रहा था)। धोनी की कप्तानी पहले जैसे ही रही हां वह बल्लेबाजी में जरूर खराब साबित हुए। उन्होंने इन दिनों शॉट खेलने की क्षमता खो दी है। लेकिन यह वापस आ सकती है। पिछले विश्व कप में उन्होंने जिस बल्लेबाज को क्रीज पर भेजा उसने रन बनाए, जिस गेंदबाज के हाथ में गेंद दी उसने विकेट लिए। इस बार ऐसा नहीं हुआ। होता है ऐसा।
हम भी ऑफिस में रोज एक जैसा काम नहीं करते। कभी यहां कभी वहा गलती होती रहती है जिसे हम ठीक करते रहते हैं। क्रिकेट में इतनी सी गलती से बल्लेबाज आउट हो जाते हैं और वह हमारी तरह इसे बदल नहीं सकते।
मुमकिन है कल धोनी के घर कुछ बेवकूफ क्रिकेट प्रशंसक पत्थरबाजी कर दे। कहीं जहीर का पुतला फूंका जाए तो कहीं रोहित शर्मा के नाम की हाय-हाय हो। लेकिन यह कितना जायज है। धोनी को बदल कर किसे कप्तान बना देंगे। है कोई विकल्प। गम्भीर से बेहतर ओपनर कौन है हमारे पास। क्या कोई अन्य भारतीय ट्वंटी 20 क्रिकेट में रोहित शर्मा से बेहतर यूटीलिटी प्लेयर है। समय है इस हार को पचाने का। ज्यादा शोर-शराबे से कुछ होगा नहीं। नाहक ही टीम पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा। और यह कोई वह विश्व कप नहीं जो चार साल में एक बार होता है। अगला ट्वंटी 20 विश्व कप अगले ही साल होना है।
कुछ दिन बाद भारत को वेस्टइण्डीज जाना है चार वनडे की सीरीज खेलने। सितंबर में चैम्पियंस ट्रॉफी भी होगी। अक्टूबर में आस्ट्रेलियाई टीम भारत आ रही है सात वनडे खेलने। और भी कई मैच हैं। हमें टीम का मनोबल सिर्फ इस हार की वजह से गिरने नहीं देना चाहिए।
2 comments:
बिक्रम भाई रतजगा कर रहे हैं क्या? मैं भी रतजगा ही कर रहा हूं। बढ़िया टिप्पणी. बढ़िया विश्लेषण, बढ़िया आलेख।
लगातार मैच खेलने के बाद कैसे उम्मीद की जा सकती है कि टीम जीतेगी। खेलने की एक सीमा होती है। लेकिन पैसों के पीछे भागने वाले खिलाडिय़ों को इससे क्या? जितने ज्यादा मैच उतने ज्यादा पैसे। ऐसे में कोई क्यों करेगा ज्यादा मैचों का विरोध। देश से तो कोई लेना-देना है नहीं अपने क्रिकेटरों को जो उनको दर्द हो। हार का दर्द को खेल प्रेमियों को होता है। एक नजर इधर पर देखें
रणजी खेलकर ही एक पीढ़ी तर सकती है
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