इस ट्वंटी 20 विश्व कप में भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और उप कप्तान वीरेन्द्र सहवाग के बीच मनमुटाव की अटकलों ने भारतीय टीम के शुरुआती प्रदर्शन से भी ज्यादा सुर्खियां बटोरी। अंततः चोटिल सहवाग वापस स्वदेश लौट गए और उनके स्थान पर दिनेश कार्तिक टीम इंडिया से जुड़ गए।
धोनी ने सहवाग के मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलनों में जिस तरह जवाब दिया उससे मीडिया का इन दोनों के संबंध में खटास का अनुमान लगाना बिल्कुल जायज था। धोनी को इस पर गुस्सा होने की बजाय स्थिति साफ करनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। हां उन्होंने अगले प्रेस कांफ्रेंस में पूरी टीम की यूनिटी परेड कराकर ड्रामेबाजी जरूर की।
अब मुद्दे की बात की जाए। जिन लोगों को धोनी और सहवाग के बीच अनबन की खबर से अचरज हो रहा हो तो उन्हें पता होना चाहिए कि इन दोनों के संबंध कभी बहुत मधुर नहीं रहे हैं।
पिछले ट्वंटी 20 विश्व कप को ही याद कीजिए। जिस फाइनल मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता था उस मैच में धोनी ने सौ फीसदी फिट सहवाग को अंतिम एकादश में शामिल नहीं किया था। इसके अलावा भी उन्होंने इस टूनार्मेंट के एक और मैच में भी सहवाग को टीम में नहीं लिया था। इसके बाद भी धोनी ने आगे हुए कई मैचों में सहवाग को टीम में शामिल नहीं किया। इस बीच सहवाग ने भारतीय टेस्ट टीम में भी अपनी जगह गंवा दी। हालांकि तब धोनी टेस्ट टीम के कप्तान नहीं थे। भारतीय टीम के 2007-08 के आस्ट्रेलियाई दौरे पर तत्कालीन कप्तान अनिल कुम्बले सहवाग की टेस्ट टीम में वापसी कराई। पर्थ के ऐतिहासिक टेस्ट में दो छोटी लेकिन अच्छी पारियां खेलने के बाद सहवाग ने एडीलेड टेस्ट में शानदार शतक जड़ा और वह इसके बाद त्रिकोणीय वनडे सीरीज में भी टीम में लौट गए। लेकिन तब तक भी धोनी का सहवाग पर पूरा भरोसा नहीं जमा था और उन्होंने कुछ मैचों में उन्हें अंतिम एकादश में नहीं रखा।
धोनी का सहवाग पर अविश्वास करने की जो प्रमुख कारण हैं उनमें एक सहवाग का फिटनेस पर पूरा ध्यान नहीं देना भी है। साथ ही वह बल्लेबाजी के वक्त कई बार गैर जिम्मेदार भी हो जाते हैं। लेकिन यही सबसे बड़ी वजह नहीं जान पड़ती है। यह ऐसा बहाना लगता है जिसे धोनी सहवाग के खिलाफ इस्तेमाल करने की ताक में रहते हैं। नहीं तो धोनी उस आर.पी.सिंह के पक्ष में कप्तानी से इस्तीफा देने की धमकी कैसे दे दते जिनकी फिटनेस और फील्डिंग टीम में सबसे खराब है (यह वाकया कुछ दिनों पहले ही हुआ था जब चयनकर्ताओं ने आरपी के स्थान पर इरफान पठान को टीम में रखा था और धोनी नाराज हो गए थे)।
सहवाग-धोनी के अनबन के पीछे सबसे बड़ा कारण सहवाग का उपकप्तान होना है। अगर धोनी काफी लोकप्रिय हैं तो सहवाग उनसे पीछे नहीं। धोनी अगर चतुर कप्तान माने जाते हैं तो यह खूबी सहवाग में भी है (हालांकि पिछले एक-दो अवसरों पर मिले मौकों को नहीं भुना सके)। सहवाग से पहले धोनी के परम मित्र युवराज सिंह टीम के उप कप्तान थे। लेकिन एक समय उन्होंने टीम पर ध्यान देने से ज्यादा अन्य बातों को तरजीह देना शुरू कर दिया था लिहाजा चयनकर्ताओं ने उनकी उपकप्तानी छीन ली थी।
कहा यह भी जा रहा है कि सहवाग ने अपनी चोट छिपाई लेकिन इस तर्क में दम नजर नहीं आ रहा है। सहवाग आईपीएल टूर्नामेंट से ही चोटिल हैं और यह बात तह उन्होंने छिपाई नहीं थी। वह इस चोट के कारण दिल्ली डेयर डेविल्स के लिए कई मैच नहीं खेल पाए थे। यह भले हो सकता है कि भारतीय टीम के फीजियो ने सहवाग की चोट का गलत आकलन किया हो। उन्हें लगा कि सहवाग जल्द ठीक हो जाएंगे लेकिन वह नहीं हुए। ऐसा तो होता रहता है। जहीर खान के साथ भी ऐसा ही हुआ था।
मामला यह भी है कि सहवाग आजकल सलामी बल्लेबाजी नहीं करना चाहते हैं और यह बात धोनी को पसंद नहीं। सहवाग की इच्छा नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने थी लेकिन धोनी ने खुद नंबर तीन पर आना शुरू कर दिया। यह बात अलग है कि आईपीएल में उन्होंने अपनी टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए सुरेश रैना को नंबर तीन का जिम्मा सौंपा था जिसमें वह काफी सफल भी रहे थे। यही रैना इस विश्व कप में अब तक ठीक से अभ्यास भी नहीं कर पाए।
धोनी निंसदेंह अच्छे कप्तान रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने गलत कदम उठा दिया है। सहवाग मुद्दे को वह काफी व्यक्तिगत स्तर पर ले जा रहे हैं जिससे आगे चलकर उनका और टीम का ही नुकसान होने वाला है।
1 comment:
धोनी धीरे धीरे अंहकार से ग्रसित होते जा रहे है...!ये शायद गांगुली की तरह ही किसी की सुनना नहीं चाहते...
Post a Comment