Friday, January 22, 2010

कुछ हद तक जायज है पाक का विरोध

आईपीएल-3 की नीलामी में किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी के नाम पर बोली न लगने के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से उठ रहे विरोध के स्वर कुछ हद तक जायज लगते हैं।

अगर भारत और पाकिस्तान के संबंधों की जटिलताओं को दूर रख कर इस मामले पर गौर किया जाए तो मेरे विचार से पाकिस्तानी खिलाडिय़ों के साथ जैसा वर्ताव हुआ वह सही नहीं था। आईपीएल नियमों के मुताबिक कोई भी खिलाड़ी नीलामी सूची में तभी रखा जाएगा जबकि उसके पक्ष में कम से कम एक फ्रेंचाइजी मांग करे। हालांकि यह कहा जा सकता है कि 66 उपलब्ध खिलाडिय़ों में से सिर्फ 14 नीलाम हुए और पाकिस्तान के अलावा कुछ ऐसे भी देश थे जिनके खिलाडिय़ों पर बोली नहीं लगी। लेकिन सच्चाई यही है कि उन देशों के खिलाडिय़ों और पाकिस्तान के खिलाडिय़ों में बड़ा अंतर था। आस्ट्रेलिया की मौजूदा टीम के खिलाडिय़ों पर इसलिए बोली नहीं लगी क्योंकि वे आपीएल थ्री के शुरुआती तीन सप्ताह तक उपलब्ध नहीं रहते। हॉलैण्ड और बांग्लादेश के खिलाड़ी उतने स्तरीय थे नहीं। पाकिस्तानी खिलाडिय़ों के साथ इन दोनों में से कोई समस्या नहीं थी। उनके खिलाड़ी पूरे आईपीएल टूर्नामेंट के दौरान उपलब्ध रहते। जहां तक उनके स्तर का सवाल है तो वे टी 20 के विश्व चैम्पियन टीम का हिस्सा हैं। यही बात उनके स्तर के बारे में बताने के लिए काफी है।

अब तीसरा तर्क यह है कि फ्रेंचाइजियों ने पाक खिलाडिय़ों पर बोली इसलिए नहीं लगाई क्योंकि उन्हें डर था कि उन्हें अहम मौके पर वीजा की समस्या भी आ सकती थी। अगर फ्रेंचाइजियों की यह समस्या थी तो उन्हें आईपीएल के कर्ताधर्ताओं को यह बात पहले बतानी चाहिए कि वे अब पाक खिलाडिय़ों पर बोली लगाने को इच्छुक नहीं हैं। सभी टीमों की गतिविधियों से अच्छी तरह वाकिफ रहने वाले आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के लिए क्या यह बात मुमकिन प्रतीत होती है कि उन्हें फ्रेंचाइजियों के इस रुख का आभास न रहा हो? मुझे तो नहीं लगता। अच्छा होता यदि आईपीएल पहले ही पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को यह बता देता कि कोई फ्रेंचाइजी वहां के क्रिकेटरों में दिलचस्पी नहीं ले रहा है और पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को नीलामी की सूची से ही बाहर कर दिया जाता।

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