सचिन तेंडुलकर अच्छा खेलें तो खबर, बुरा खेलें तो खबर। शतक बनाए तो सनसनी, शतक से चूके तो सनसनी। पिछले दो साल से उन्होंने अच्छा नहीं खेला तो जााहिर है इसकी चर्चा सभी क्रिकेट प्रेमियों की जबान पर होगी, होनी भी चाहिए। हालांकि, इस बार सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि उनकी विफलता की ओट में टीम इंडिया के कई अन्य सितारों की नाकामयाबी छिप रही है। सचिन के बारे में कहा जा रहा है कि वे 40 साल के होने वाले हैं क्रिकेट के लिहाज से बूढ़े हो गए। सही बात है। लेकिन हमारे युवाओं का क्या? वे क्यों नहीं परफॉर्म नहीं कर रहे? उनके प्रदर्शन पर टिप्पणियां क्यों नहीं हो रही?
सबसे पहले बात सबसे पहले बल्लेबाजी करने क्रीज पर आने वाले गौतम गंभीर की। सचिन ने अपना पिछला टेस्ट शतक दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जनवरी 2011 में जमाया था। वहीं गंभीर ने टेस्ट क्रिकेट में आखिरी शतकीय पारी जनवरी 2010 में खेली थी। वो सचिन से भी एक साल पहले से आउट ऑफ ऑर्म चल रहे हैं। जाहिर है उनकी उम्र संन्यास की नहीं है लेकिन उन्हें ड्रॉप तो किया ही जा सकता है। यही हाल वीरेंद्र सहवाग का भी है। इंग्लैंड के खिलाफ पहले टेस्ट में उन्होंने जरूर अच्छी पारी खेली लेकिन इससे पहले वे भी पिछले दो साल से कुछ खास कमाल नहीं कर पाए थे। टेस्ट क्रिकेट में मध्यक्रम की सफलता काफी हद तक शीर्ष क्रम पर भी निर्भर होती है। सचिन की विफलता के रहस्य में कहीं न कहीं ओपनरों की नाकामयाबी भी शामिल है।
अब बात टीम के युवा सितारे विराट कोहली की। वनडे क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करने वाले कोहली ने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एडीलेड और पर्थ में दो अच्छी पारियां खेलने के अलावा टेस्ट क्रिकेट में कुछ खास नहीं किया है। बाकी बल्लेबाज फॉर्म में होते तो वे भी टेस्ट टीम में जगह के हकदार नहीं हो पाते। इसके बाद युवराज सिंह। मेरे विचार से टेस्ट टीम में युवी का चयन परफॉर्मेंस बेस्ड न होकर इमोशन बेस्ड था। युवराज को पहले भी टेस्ट टीम में जगह मिली लेकिन वे इसे पक्की करने में हमेशा नाकाम रहे। युवी के विकल्प हैं सुरेश रैना। लेकिन तय मानिए रैना के पास भी टेस्ट क्रिकेट के लायक जरूरी तकनीक नहीं है।
अब अपने कप्तान महेंद्र सिंह धौनी। पिछली 15 पारियों में सिर्फ तीन शतक। क्या इसी को लीडिंग फ्रॉम द फ्रंट कहेंगे। बल्लेबाजी ही नहीं कप्तानी में भी धौनी की धार लगातार कुंद होती जा रही है। अब वे प्रयोगवादी कप्तान की जगह जिद्दी कप्तान बनने लगे हैं। उनकी जिद, यह चाहे टीम चयन को लेकर हो यह पिच की पसंद को लेकर हो टीम को नुकसान पहुंचा रही है।
अब गेंदबाजों की बात। सबसे पहले धौनी के सबसे पसंदीदा स्पिनर रविचंद्रन अश्विन की चर्चा। उन्होंने 10 टेस्ट मैचों में 55 विकेट लिए हैं। लेकिन इनमें से 40 विकेट वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड के खिलाफ खेले कुल पांच टेस्ट में लिए। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी टीमों के खिलाफ खेले कुल पांच मैचों में महज 15 विकेट। यही हाल तेज गेंदबाज जहीर खान का है। वे लंबे समय से न तो पूरी तरह फिट हैं और न ही फॉर्म में हैं। कुल मिलाकर अभी बल्लेबाज में चेतेश्वर पुजारा और गेंदबाज में प्रज्ञान ओझा ही ऐसे हैं जो लय में हैं।
जाहिर जिस टीम के आठ-नौ खिलाड़ी ऑउट ऑफ फॉर्म हों उसकी किस्मत एक खिलाड़ी के संन्यास लेने से नहीं बदलने वाली। सचिन को संन्यास लेना चाहिए या नहीं यह अपनी जगह चर्चा का बेहद माकूल विषय है। लेकिन इसके साथ ही बाकी खिलाडिय़ों पर गौर फरमाना बहुत जरूरी है।