न्यू माइंडशेयर के सर्वे के मुताबिक में दुनिया भर के अधिकांश लोगों (सर्वे में भाग लेने वाले) ने ब्राजील को 19वें फीफा विश्व कप खिताब का सबसे प्रबल दावेदार बताया। यह सर्वे भारत में भी हुआ था और यहां भी 19 प्रतिशत लोगों की राय थी कि ब्राजील ही चैम्पियन बनेगा। इस नतीजे से तो लगता है कि हम भारतीय भी फुटबाल के बारे में वैसी ही सोच और जानकारी रखते हैं जैसे किसी अन्य देश के लोग। हालांकि भारतीयों की नजर में दूसरे सबसे प्रबल दावेदार का नाम जानने के बाद पता चलता है कि इस देश में फुटबाल की औकात क्या है। सर्वे में भाग लेने वाले 14 प्रतिशत हिन्द निवासियों के मुताबिक आस्ट्रेलिया विश्व कप जीतने का सबसे प्रबल दावेदार था।
आज की तारीख में आस्ट्रेलिया विश्व कप से बाहर हो चुका है और विश्व कप शुरू होने से पहले भी कोई भी आस्ट्रेलियाई 10 केन बीयर गटक लेने के बाद भी अपनी टीम को खिताब का दावेदार नहीं बताता। तो आस्ट्रेलिया भारतीयों की नजर में दावेदार कैसे हो गया? सीधा सा जवाब है क्रिकेट की वजह से। हम भारतीय क्रिकेट के दीवाने हैं और आस्ट्रेलिया क्रिकेट में बेहद मजबूत टीम है। पिछले तीन वनडे क्रिकेट विश्व कप और दो चैम्पियंस ट्रॉफी में हमने आस्ट्रेलिया को ही चैम्पियन बनते देखा तो सोचा आस्ट्रेलिया फुटबाल विश्व कप भी जीत जाएगा। मतलब साफ है फुटबाल के बारे में आम भारतीयों की जानकारी या तो न के बराबर है या काफी सीमित है। यहां फुटबाल की सुध सिर्फ फुटबाल विश्व कप के समय ली जाती है और बाकी चार साल इसे ताक पर रख दिया जाता है। इसलिए जानकारी का दायरा वर्ल्ड कप से वर्ल्ड कप चलता है। बीच में क्या हुआ कुछ पता नहीं।
इनमें उनकी गलती भी नहीं है। आखिर उन्हें पता चले भी कैसे। जानकारी के लिए वे जिन माध्यमों (समाचार पत्र और न्यूज चैलन) पर निर्भर हैं वे भी वर्ल्ड कप टू वर्ल्ड कप नजरिया रखते हैं। (एक बात स्पष्ट करता चलूं कि मैं यहां बात हिन्दी भाषी खेल प्रेमियों और हिन्दी अखबार या चैनल देखने वाले फुटबाल प्रेमियों की कर रहा हूं। अंग्रेजी में हालात तो फिर भी दुरुस्त हैं। पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और उत्तर-पूर्व में फुटबाल नंबर एक खेल है और यहां के भाषायी अखबार फुटबाल की खबरें नियमित तौर पर छापते हैं चार वर्ष के अंतराल पर नहीं।) अब ये हिन्दी अखबार (इनमें से एक में मैं भी कार्यरत हूं) विश्व कप को रोज एक पन्ना समर्पित कर रहे हैं और ये हिन्दी चैनल दिन भर में कई बार फुटबाल अपडेट भी दिखा रहे हैं। लेकिन सच बात यह है कि पाठक और दर्शक इनके साथ लय नहीं बिठा पा रहे। मैसी, रोनाल्डो, काका या रूनी से अति लोकप्रिय नाम तो उन्हें पता है लेकिन इनके अलावा अन्य नामों को पढ़ने या सुनने में भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा रहा है। 11 जुलाई तक (फाइनल के दिन तक) या इससे एक-दो दिन और आगे तक ये चार साली फुटबाल जुनून जारी रहेगा और उसके बाद फिर इसे ब्राजील में होने वाले 2013 विश्व कप तक कब्र में दफन कर दिया जाएगा।
अगले साल एशियन कप फुटबाल टूर्नामेंट का आयोजन होना है और भारत ने लम्बे अर्से बाद इस टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई किया है। लेकिन मुझे शक है कि इस टूर्नामेंट में मौजूदा विश्व कप की तुलना में 10 प्रतिशत कवरेज भी मिले। इंग्लिश प्रीमियर लीग, स्पेनिश ला लीगा, इतालवी सीरी-ए, जर्मन बुंदसलीगा, यूएफा चैम्पियंस लीग, यूएफा कप के साथ-साथ भारत की आई लीग, संतोष ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट पहले की तरह आगे भी हर साल होंगे लेकिन हिन्दी समाचार माध्यमों में इनकी कवरेज नहीं होगी, होगी भी तो खाली जगह को पूरा करने के लिए। इसके बावजूद 2014 में ऐसे ही या इससे भी बड़े पैमाने पर हिन्दी अखबार और न्यूज चैनल 20वें फीफा विश्व कप की कवरेज लेकर आएंगे और यह उम्मीद करेंगे सुधी पाठक या दर्शक बीते सालों में अपने दम पर फुटबाल को लेकर अपडेट हो चुके होंगे और हमारी कवरेज का मजा लेंगे।