
इस लेख की शुरुआत में ही साफ कर दूँ कि मैं जातिवादी नही हूँ और ना ही किसी जाति से मेरा खास लगाव या अलगाव है. चलिए अब असल मुद्दे पर आता हूँ. ज्यादा दिन नही बीते जब निजी क्षेत्रों पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण कि मांग उठी थी. बतौर पत्रकार मैं भी निजी क्षेत्र में कार्य करने वाला नौकर हूँ.
मेरे कार्यालय में सम्पादकीय विभाग में कुल २३ सदस्य हैं. इसमें से १५ सदस्य ऊंची जाति के हैं जबकि ८ पिछड़ी जाति के. ऊंची जाति के १५ सदस्यों में ११ ब्राहमण हैं, ३ राजपूत और १ कायस्थ. पिछड़ी जाति के ८ सदस्यों में ५ बनिया वर्ग के हैं २ कुशवाहा और १ यादव. हमारे यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिम समुदाय का कोई भी सदस्य नहीं है. अब ये बताने कि ज़रूरत बिल्कुल नही है ये तस्वीर भारत की वास्तविक सामाजिक लास्वीर से कतई मेल नही खाती.
मेरे जो पत्रकार मित्र अन्य संस्थानों में कार्य करते हैं वो भी कुछ ऐसी ही दास्ताँ बयां करते हैं. अब जब समाज को आइना दिखाने वाला, उसे सच्चाई से रूबरू कराने वाला पत्रकार समुदाय ही समाज के कुछ गिने चुने तत्वों से बना हो तो वह किसी गंभीर मसले पर जहाँ उनका जातीय हित दव पर हो सच कैसे प्रस्तुत करेंगे. मैं यह नही कहता कि पत्रकारिता में आरक्षण लागु कर दिया जाए लेकिन इस बात कि सख्त जरुरत है कि अनुपात सही रखा जाए.
2 comments:
भाई सिंह जी,
आप कम से कम पत्रकारिता को तो जातिवाद से दूर रखेया! आप ने लिखा है की मैं जातिवादी नही हूँ ...लेकिन मुझे लगता है आप पुरी तरह जातिवादी है... पत्रकारिता मे आरक्षण की मांग बहुत हास्यद्पद है... इस तरह की मांग करके आप इस पेशे को कलंकित कर रहे है...
शायद आपने मेरी बात नही समझी. लेकिन इसमे मेरी ही गलती है जो मैं इसे सभी लोगो के समझ में आने लायक नही लिख सका. आगे से ख्याल रखूंगा. आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया. आगे भी उत्साहवर्धन चाहूँगा
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