Saturday, June 13, 2009

क्या इंग्लैण्ड के खिलाफ योजना बदलेंगे धोनी?

सुपर एट चरण में भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही और उसे वेस्टइण्डीज के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस हार से इतना तो तय हो गया कि जिस योजना के साथ भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी टूर्नामेंट में उतरे वह सफल नहीं हो रही है। अब इंग्लैण्ड के खिलाफ रविवार को होने वाले मैच में धोनी को नई योजना या यूं कहें कि प्लान बी के साथ उतरना होगा नहीं तो गत विजेता भारत टूर्नामेंट के बीच में ही सेमीफाइनल की होड़ से बाहर हो सकता है।

धोनी की योजना की सबसे बड़ी खामी रही कि वह अब तक हुए मैचों में पांच विशेषज्ञ गेंदबाजों के साथ उतरे। इससे भारत के बल्लेबाजी क्रम की गहराई कम हुई और बल्लेबाजों के ऊपर विकेट बचाने का अतिरिक्त दबाव भी आया। सबसे ज्यादा दबाव में तो खुद कप्तान ही दिखे जिन्होंने कैरेबियाई टीम के खिलाफ 23 गेंदें झेल कर सिर्फ 11 रन बनाए। उनके अलावा गौतम गंभीर भी वह तेजी नहीं दिखा सके जिसके लिए वह जाने जाते हैं। ट्वंटी 20 मूलत: बल्लेबाजों का खेल है और यहां उन्हें खुलकर खेलने की आजादी मिलनी ही चाहिए। अगल विकेट बचाने का दबाव आया तो जाहिर है रन रेट कम होगा।

अब भारत को फिर से सात बल्लेबाजों की थ्योरी अपनानी होगी। इसके लिए हरभजन या प्रज्ञान ओझा में से एक को अंतिम एकादश से बाहर कर दिनेश कार्तिक को टीम में शामिल करना होगा। यह मुश्किल फैसला हो सकता है लेकिन टीम के हित में ऐसा करना बेहद जरूरी हो गया है। साथ ही ईशांत शर्मा के स्थान पर प्रवीण कुमार को मौका दिया जाना चाहिए। प्रवीण आईपीएल में बेहद सफल रहे थे और वह जरूरत पडऩे पर कुछ रन भी बना सकते हैं। सुरेश रैना, युवराज सिंह, रोहित शर्मा और यूसुफ पठान मिलकर चार ओवर तो डाल ही सकते हैं।

इसके आलावा धोनी एक और बड़ी गलती जो कर रहे हैं वह है उनका बल्लेबाजी क्रम में ऊपर आना। पहले बांग्लादेश के खिलाफ हुए ग्रुप मैच में और फिर वेस्टइण्डीज के खिलाफ मैच में धोनी ने जरूरत से ज्यादा गेंदें व्यर्थ की। वनडे मैचों में संकट के समय उनकी ऐसी बल्लेबाजी तो जायज है लेकिन ट्वंटी 20 क्रिकेट में ऐसे प्रदर्शन से टीम को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। धोनी पिछले करीब दो साल निचले मध्यक्रम में बल्लेबाजी के लिए आते हैं और सिंगल, डबल के सहारे अपनी पारी को आगे बढ़ाते हैं। अब वह भले ही ऊपर बल्लेबाजी के लिए आ रहे हों लेकिन सिंगल-डबल वाली उनकी आदत गई नहीं। खुद नीचे आने के साथ-साथ उन्हें बल्लेबाजी क्रम में भी बदलाव करने चाहिए।

गंभीर के साथ ओपनिंग जिम्मेदारी यूसुफ पठान को सौंपी जाए। क्योंकि गंभीर अभी तक पुरानी रंगत में नहीं लौटे हैं ऐसे में यूसुफ के साथ रहने से टीम का रन रेट अच्छा रहेगा। तीसरे नंबर पर रैना और चौथे नंबर पर युवराज बल्लेबाजी करें। पांचवें नंबर पर रोहित शर्मा को मौका मिले। छठे नंबर पर कार्तिक और सातवें नंबर पर धोनी आएं। अगर धोनी यूसुफ को मध्य क्रम में इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इरफान पठान से ओपनिंग कराई जा सकती है।

टीम में सात बल्लेबाज होने से भारत को किसी बड़े स्कोर का पीछा करने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। आश्चर्य की बात तो यह है कि जब भारत पिछले विश्व कप समेत तमाम टूर्नामेंट में इस फॉर्मूले के साथ कामयाब हुआ तो यहां इसमें बदलाव की क्या जरूरत थी। पांच गेंदबाजों की थ्योरी उस टीम के लिए अच्छी है जिसके पास क्वालिटी ऑलराउंडर हों लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है। यहां तक ऑलराउंडरों से भरपूर दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैण्ड ने भी सात बल्लेबाजों के साथ उतरने पर ही भरोसा किया।

Thursday, June 11, 2009

धोनी और सहवाग में मनमुटाव नई बात नहीं

इस ट्वंटी 20 विश्व कप में भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और उप कप्तान वीरेन्द्र सहवाग के बीच मनमुटाव की अटकलों ने भारतीय टीम के शुरुआती प्रदर्शन से भी ज्यादा सुर्खियां बटोरी। अंततः चोटिल सहवाग वापस स्वदेश लौट गए और उनके स्थान पर दिनेश कार्तिक टीम इंडिया से जुड़ गए।

धोनी ने सहवाग के मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलनों में जिस तरह जवाब दिया उससे मीडिया का इन दोनों के संबंध में खटास का अनुमान लगाना बिल्कुल जायज था। धोनी को इस पर गुस्सा होने की बजाय स्थिति साफ करनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। हां उन्होंने अगले प्रेस कांफ्रेंस में पूरी टीम की यूनिटी परेड कराकर ड्रामेबाजी जरूर की।
अब मुद्दे की बात की जाए। जिन लोगों को धोनी और सहवाग के बीच अनबन की खबर से अचरज हो रहा हो तो उन्हें पता होना चाहिए कि इन दोनों के संबंध कभी बहुत मधुर नहीं रहे हैं।

पिछले ट्वंटी 20 विश्व कप को ही याद कीजिए। जिस फाइनल मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता था उस मैच में धोनी ने सौ फीसदी फिट सहवाग को अंतिम एकादश में शामिल नहीं किया था। इसके अलावा भी उन्होंने इस टूनार्मेंट के एक और मैच में भी सहवाग को टीम में नहीं लिया था। इसके बाद भी धोनी ने आगे हुए कई मैचों में सहवाग को टीम में शामिल नहीं किया। इस बीच सहवाग ने भारतीय टेस्ट टीम में भी अपनी जगह गंवा दी। हालांकि तब धोनी टेस्ट टीम के कप्तान नहीं थे। भारतीय टीम के 2007-08 के आस्ट्रेलियाई दौरे पर तत्कालीन कप्तान अनिल कुम्बले सहवाग की टेस्ट टीम में वापसी कराई। पर्थ के ऐतिहासिक टेस्ट में दो छोटी लेकिन अच्छी पारियां खेलने के बाद सहवाग ने एडीलेड टेस्ट में शानदार शतक जड़ा और वह इसके बाद त्रिकोणीय वनडे सीरीज में भी टीम में लौट गए। लेकिन तब तक भी धोनी का सहवाग पर पूरा भरोसा नहीं जमा था और उन्होंने कुछ मैचों में उन्हें अंतिम एकादश में नहीं रखा।

धोनी का सहवाग पर अविश्वास करने की जो प्रमुख कारण हैं उनमें एक सहवाग का फिटनेस पर पूरा ध्यान नहीं देना भी है। साथ ही वह बल्लेबाजी के वक्त कई बार गैर जिम्मेदार भी हो जाते हैं। लेकिन यही सबसे बड़ी वजह नहीं जान पड़ती है। यह ऐसा बहाना लगता है जिसे धोनी सहवाग के खिलाफ इस्तेमाल करने की ताक में रहते हैं। नहीं तो धोनी उस आर.पी.सिंह के पक्ष में कप्तानी से इस्तीफा देने की धमकी कैसे दे दते जिनकी फिटनेस और फील्डिंग टीम में सबसे खराब है (यह वाकया कुछ दिनों पहले ही हुआ था जब चयनकर्ताओं ने आरपी के स्थान पर इरफान पठान को टीम में रखा था और धोनी नाराज हो गए थे)।

सहवाग-धोनी के अनबन के पीछे सबसे बड़ा कारण सहवाग का उपकप्तान होना है। अगर धोनी काफी लोकप्रिय हैं तो सहवाग उनसे पीछे नहीं। धोनी अगर चतुर कप्तान माने जाते हैं तो यह खूबी सहवाग में भी है (हालांकि पिछले एक-दो अवसरों पर मिले मौकों को नहीं भुना सके)। सहवाग से पहले धोनी के परम मित्र युवराज सिंह टीम के उप कप्तान थे। लेकिन एक समय उन्होंने टीम पर ध्यान देने से ज्यादा अन्य बातों को तरजीह देना शुरू कर दिया था लिहाजा चयनकर्ताओं ने उनकी उपकप्तानी छीन ली थी।

कहा यह भी जा रहा है कि सहवाग ने अपनी चोट छिपाई लेकिन इस तर्क में दम नजर नहीं आ रहा है। सहवाग आईपीएल टूर्नामेंट से ही चोटिल हैं और यह बात तह उन्होंने छिपाई नहीं थी। वह इस चोट के कारण दिल्ली डेयर डेविल्स के लिए कई मैच नहीं खेल पाए थे। यह भले हो सकता है कि भारतीय टीम के फीजियो ने सहवाग की चोट का गलत आकलन किया हो। उन्हें लगा कि सहवाग जल्द ठीक हो जाएंगे लेकिन वह नहीं हुए। ऐसा तो होता रहता है। जहीर खान के साथ भी ऐसा ही हुआ था।

मामला यह भी है कि सहवाग आजकल सलामी बल्लेबाजी नहीं करना चाहते हैं और यह बात धोनी को पसंद नहीं। सहवाग की इच्छा नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने थी लेकिन धोनी ने खुद नंबर तीन पर आना शुरू कर दिया। यह बात अलग है कि आईपीएल में उन्होंने अपनी टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए सुरेश रैना को नंबर तीन का जिम्मा सौंपा था जिसमें वह काफी सफल भी रहे थे। यही रैना इस विश्व कप में अब तक ठीक से अभ्यास भी नहीं कर पाए।

धोनी निंसदेंह अच्छे कप्तान रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने गलत कदम उठा दिया है। सहवाग मुद्दे को वह काफी व्यक्तिगत स्तर पर ले जा रहे हैं जिससे आगे चलकर उनका और टीम का ही नुकसान होने वाला है।

Sunday, June 7, 2009

देश के नाम पर

खेल की दुनिया में ‘प्रोफेसनल अप्रोच’ का बड़ा महत्व है। यानी आप चाहे देश के लिए खेलें या किसी क्लब के लिए अपना शत प्रतिशत योगदान दें। विश्व में विभिन्न खेलों के कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो इस ‘प्रोफेसनल अप्रोच’ वाले मंत्र को गहरे आत्मसात किए होते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो देश के लिए कमतर और क्लब के लिए बेहतर प्रदर्शन करते हैं। लेकिन भारत के कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जिनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तभी सामने आता है जब वे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। टेनिस में लिएंडर पेस और क्रिकेट में सौरव गांगुली कुछ ऐसे ही नाम हैं। मौजूदा समय में युवराज सिंह और वीरेन्द्र सहवाग भी ऐसे ही क्रिकेटर हैं जिनका असली रंग तभी निखरता है जब हो तिरंगे के नीचे खेल रहे हों न कि किंग्स इलेवन पंजाब या दिल्ली डेयर डेविल्स के झंडे तले।

हाल ही संपन्न इंडियन प्रीमियर लीग के दूसरे संस्करण में यह दोनों बल्लेबाज कुछ खास नहीं कर पाए। लेकिन ट्वंटी 20 विश्व कप में भारत के पहले ही मैच में युवराज फॉर्म में लौट आए। उनके 18 गेंदों पर चार छक्कों की मदद से बनाए 41 रन ने बांग्लादेश के उटलफेर की सारी मंशाओं पर पानी फेर दिया। सहवाग चोटिल होने के कारण इस मैच में नहीं खेल सके लेकिन इतना तय है कि मौका मिलने पर वह भी आईपीएल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

देश के नाम पर अच्छा खेलने की इन खिलाड़ियों की इस खासियत से चयनकर्ता भी परिचित हैं। तभी तो घरेलू क्रिकेट में इनके औसत प्रदर्शन के बावजूद इन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जौहर दिखाने का मौका मिलता रहता है। याद कीजिए भारत के पिछले आस्ट्रेलियाई दौरे के लिए सहवाग की वापसी को। उस समय सहवाग भारतीय टीम से बाहर थे और उन्होंने उन दिनों में घरेलू क्रिकेट में भी कोई कमाल नहीं दिखाया था। लेकिन तात्कालीन कप्चान अनिल कुम्बले की मांग पर सहवाग टीम में वापस आए। इसके बाद जो हुआ वह अपने आप में इतिहास है। युवराज के साथ भी ऐसा ही है। पंजाब की रणजी टीम या किंग्स इलेवन पंजाब के लिए उन्होंने अब तक कोई ऐसी पारी नहीं खेली है जिसे दर्शक लम्बे समय तक याद रखें। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उन्होंने कई कभी न भूलने वाली पारियां खेली हैं।

इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है वह यह है कि भारत और भारतीयों को अच्छा करने की प्रेरणा प्रोफेशनल कारणों से नहीं बल्कि इमोशनल कारणों से मिलती है। जाहिर है जो भावनात्मक उबाल देश के नाम पर आ सकता है वह क्लब या राज्य के नाम पर नहीं आ सकता है।

Friday, March 27, 2009

टीम इंडिया पर उसी के हथियार से हमला

पाटा विकेट। तेज गेंदबाज बेअसर। फिर दोनों छोर से स्पिन आक्रमण। ललचाती गेंदों पर आसमानी शॉट खेलने के चक्कर में अपने विकेट गंवाता बल्लेबाज। ये कुछ ऐसे नजारे हैं जो टीम इंडिया के टेस्ट मैचों में अक्सर दिखाई देते हैं। नेपियर के मैक्लीन पार्क में भारत और न्यूजीलैण्ड के बीच चल रहे दूसरे टेस्ट मैच के दूसरे दिन भी यह नजारा दिखा। लेकिन पहले और अब में एक बड़ा अंतर यह रहा कि गेंदबाजी पर विपक्षी टीम थी और विकेट फेंक रहे थे भारतीय बल्लेबाज।

स्पिन आक्रमण के खिलाफ भारतीय बल्लेबाजों की मजबूती जग जाहिर है लेकिन न्यूजीलैण्ड के कप्तान डेनियल विटोरी जो खुद भी एक उम्दा लेफ्ट आर्म स्पिनर हैं भारतीयों के खिलाफ उसी के हथियार के इस्तेमाल की रणनीति अपना रहे हैं। भारतीय टीम जब न्यूजीलैण्ड रवाना हुई तब उसे सबसे ज्यादा डर वहां की उछाल और स्विंग की मददगार पिचों से था। स्पिन की चुनौती की उम्मीद तो उसे बिल्कुल भी नहीं रही होगी। लेकिन जब रफ्तार की योजना फेल हो गई तो कीवियों के कप्तान ने भारतीयों को फिरकी के जाल में फांसने की योजना बनाई।

टीम इंडिया के बल्लेबाजों को यह बात टेस्ट मैच शुरू होते ही समझ जानी चाहिए थी क्योंकि न्यूजीलैण्ड इस मैच में दो स्पिनरों (विटोरी और जीतन पटेल) के साथ उतरा था। वहीं भारतीय थिंक टैंक ने सिर्फ एक स्पिनर (हरभजन सिंह) को खिलाने का फैसला किया। अब विटोरी का यह फैसला रंग लाता दिख रहा है। इसे कम से कम शुरुआती सफलता तो मिल ही गई। वीरेन्द्र सहवाग और गौतम गंभीर दोनों ही स्पिन के खिलाफ धाकड़ खिलाड़ी माने जाते हैं लेकिन ये दोनों खुद को विटोरी के बुने जाल में फंसने से नहीं रोक सके। सहवाग विटोरी को लगातार दूसरा छक्का जडऩे के प्रयास में विकेटकीपर ब्रैंडन मैकुलम को कैच थमा बैठे तो गंभीर इन फील्ड के ऊपर से शॉट खेलने के प्रयास में पटेल का शिकार बन गए। नाइट वाचमैन ईशांत शर्मा ने कुछ देर तो हौसला दिखाया लेकिन शाम ढलते-ढलते विटोरी ने उन्हें भी पैवेलियन में हवा खाने भेज दिया।

अब स्पिन के खिलाफ भारतीयों की प्रतिष्ठा दाव पर है। सचिन और राहुल द्रविड़ क्रीज पर हैं जबकि अगला नंबर वीवीएस लक्ष्मण का है। ये सभी स्पिन के खिलाफ धुरंधर बल्लेबाज हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि वे भारत को संकट से उबार ले जाएंगे। लेकिन भारत अभी भी कीवी टीम से पहली पारी के आधार पर 500 से ज्यादा रनों से पीछे है और इसका दबाव इन बल्लेबाजों पर भी पड़ सकता है। मैच के तीसरे दिन भारतीय किस तरह इस चुनौती का सामना करते हैं यह देखने वाली बात होगी।

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