Tuesday, June 16, 2009

तो गोलू के बाथरूम जाने से हार गया भारत

भारतीय टीम ट्वंटी 20 विश्व कप से बाहर हुई तो इसके सबसे बड़े कारणों में धोनी की घटिया बल्लेबाजी, फील्डरों के खराब प्रदर्शन के साथ-साथ गोलू का भारतीय पारी के दौरान बाथरूम जाना भी रहा। क्या कहा आपने, ये गोलू कौन है ----, गोलू को नहीं जानते ----। गोलू 12 साल का वह बालक है जो भारतीय पारी के दौरान अगर बाथरूम गया तो विकेट गिरने की संभावना कफी बढ़ जाती है। गोलू खुद तो ऐसा नहीं मानता लेकिन उसके भैया और तमाम दोस्त यही बात कहते हैं।

आप और हम भी शायद उस गोलू की तरह या उसके भैया और दोस्तों के जैसे हैं जो भारत के मैचों के दौरान तमाम किस्म के टोटके करते हैं। कभी-कभी तो इसक खुमार मैच खत्म होने के दो-तीन दिन बाद तक भी रहता है। भारत मैच हारा और अगले दिन परचून की दुकान जाते वक्त पड़ोसी मिल जाता है और कहता क्यों भाई साहब हरवा ही दिया आपने इंडिया को। इस पर जवाब होता है अरे भाई साबह मैंने नहीं गोलू (भोलू, संदीप, रमेश, सुरेश भी हो सकते हैं जिम्मेदार) ने हरवा दिया। युवराज बैटिंग कर रहा था और वह बाथरूम जाने की जिद करने लगा। आप तो जानते ही हैं वह बाथरूम जाता है तो क्या होता है। वह लौटा नहीं कि युवी स्टंप आउठ होकर पैवेलियन लौट चुका था। वह क्रीज पर थोड़ी देर और टिक जाता तो मैच का नक्शा बदल जाता।

आश्चर्य की बात है कि इस तरह के टोटकों में यकीन रखने वाले कोई अनपढ़ या गंवार नहीं होते। वह पत्रकार, बैंकर, आईएएस अफसर से लेकर मल्टीनेशनल कम्पनियों का कोई कर्मचारी भी हो सकता है। जिस पर रौब जमा उससे तो टोटके करवा लिए और नहीं जमा तो मन में सैकड़ों गालियां दे डाली। साला जाता भी नहीं---- पूरा मैच देखेगा और इंडिया की वाट लगा के ही दम लेगा। हालांकि मजा तब आता है जब ऐसे लोग खुद किसी दूसरे के टोटके का पात्र बन जाते हैं। तब इन्हें बड़ा अजीब लगता है। सोचते हैं कि मैं तो मैच जिताऊ प्लेयर हूं कोई बाहरी (आस्ट्रेलियाई ग्रेग चैपल की तरह) मुझे क्या नसीहत देगा। ऐसा लगता है कि धोनी, युवराज, इरफान जहीर की मेहनत तो बस यूं ही है मैच तो यही जिताते हैं तीन घंटे एक ही कुर्सी पर बैठ कर, पेशाब दबा कर, पानी न पीकर या बहुत पानी पी कर। ताज्जुब है।

ऐसा नहीं ये टोटके सिर्फ आम जन ही करते हैं। ये क्रिकेटर भी कम नहीं भाई साहब। कोई बाएं पैर में पहले पैड बांधता है तो कोई लाल रुमाल लेकर क्रीज पर जाता है, कोई ग्लव्स में स्क्वैश की गेंद रखता है तो कोई मैच के दौरान टी-शर्ट बदलता है। कितनी जायज है ये टोटकेबाजी या किसी के ऊपर शुभ-अशुभ का ठप्पा लगा देना।

क्रिकेट मैच तो हल्की-फुल्की बात है लेकिन ये आदत जिन्दगी के गम्भीर क्षणों में भी पीछा नहीं छोड़ती। वो ऑफिस में आया इसलिए मेरी नौकरी गई। सवेरे उसका चेहरा देख लिया तो दिन खराब हो गया। फलां साला है ही मनहूस--- आदि-आदि। ये कोई हंसी-मजाक नहीं। क्या ऐसी सोच को क्रिकेट में जायज और गम्भीर मसलों पर नाजायज है। गलत तो गलत ही है चाहे किसी भी अवसर पर क्यों न हो। आपका क्या कहना है?

Monday, June 15, 2009

उफ्फ ये क्रिकेट की अनिश्चितताएं

क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है---- इसका इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि मौजूदा ट्वंटी विश्व कप में अब तक एक भी मैच नहीं हारने वाली श्रीलंका की टीम अगर मंगलवार को न्यूजीलैण्ड से एक रन से भी हारती है तो वह टूर्नामेंट से बाहर हो जाएगी।

श्रीलंका ने ग्रुप ऑफ डेथ माने जाने वाले ग्रुप सी में अपने दोनों मैच जीते (आस्ट्रेलिया और वेस्टइण्डीज के खिलाफ)। इसके बाद सुपर एट में ग्रुप एफ में उसने पाकिस्तान और आयरलैण्ड को भी हराया। लेकिन अब स्थितियां ऐसी बन गई कि न्यूजीलैण्ड के खिलाफ होने वाला उसका मैच अचानक ही करो या मरो वाला हो गया।

ग्रुप एफ में पाकिस्तान ने सोमवार को आयरलैण्ड पर बड़ी जीत दर्ज की। इससे पहले वह श्रीलंका से हार गया था जबकि न्यूजीलैण्ड से जीता था। आयरलैण्ड से मैच के बाद पाक टीम का नेट रन रेट 1.185 हो गया जो कि श्रीलंका (0.700) और न्यूजीलैण्ड (0.093) दोनों से बेहतर है। फिलहाल पाकिस्तान और श्रीलंका के सुपर एट में दो-दो जीत से चार अंक हैं जबकि न्यूजीलैण्ड के पास एक जीत (आयरलैण्ड के खिलाफ) से दो अंक हैं।

अभी न्यूजीलैण्ड का नेट रन रेट श्रीलंका से बेहतर है। अगर वह श्रीलंका के खिलाफ मैच जीत जाता है तो ग्रुप एफ से पाकिस्तान, श्रीलंका और आयरलैण्ड तीनों के चार-चार अंक हो जाएंगे। ऐसे में नेट रन रेट से पहली दो टीमों का फैसला होगा और पाकिस्तान और न्यूजीलैण्ड सेमीफाइनल में पहुंच जाएं। बेचारा श्रीलंका जो अब तक चार में चार में से चारों मैच में जीत दर्ज की टूर्नामेंट से बाहर हो जाएगा। मैं नहीं चाहता ऐसा हो क्योंकि प्रदर्शन के लिहाज से श्रीलंकाई टीम ज्यादा डीजर्विंग है लेकिन ट्वंटी 20 में कुछ भी अनुमान लगाना असंभव है।

पिछले ट्वंटी 20 विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका के साथ भी ऐसा ही हुआ था जिसने अपने पहले चार मैच जीते लेकिन भारत के खिलाफ एक मैच हारने के बाद वह टूर्नामेंट से बाहर हो गया। वह रन रेट के आधार पर भारत और न्यूजीलैण्ड से पिछड़ गया।

गनीमत है ये क्रिकेट नहीं चलाते

हमारी क्रिकेट टीम ट्वंटी 20 विश्व कप के सेमीफाइनल की होड़ से बाहर हो गई। क्या इससे रातों-रात टीम इण्डिया गई गुजरी हो गई? क्या धोनी चतुर कप्तान से फिसड्डी कप्तान हो गए? क्या गौतम गम्भीर, रोहित शर्मा, जहीर खान, हरभजन सिंह जैसे क्रिकेटर अब क्रिकेटर न हो कर कबाड़ हो गए? क्या अब भारतीय टीम को वापस देश लाने के बजाय प्रशांत महासागर में डूबो देना चाहिए (करीब 15 साल पहले विशन सिंह बेदी शारजाह में भारतीय टीम की हार पर ऐसा कहा था) ?

उपरोक्त लिखे किसी जवाल का जवाब हां नहीं है। और गनीमत है कि जो इनका जवाब हां में देते हैं वो इस देश की क्रिकेट नहीं चलाते। भारतीय टीम हारी जाहिर है खराब खेली इसलिए हारी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि टीम ही खराब हो गई। क्रिकेट फॉर्म का खेल है और दुर्भाग्य है हमारे कई खिलाड़ी एक साथ आउट ऑफ फॉर्म हो गए। गम्भीर टच में नहीं थे, सहवाग के अचानक लौटने से रोहित को ओपनिंग करनी पड़ गई। रैना पहली बार इंग्लैण्ड गए थे। जहीर-ईशांत अपनी लय में नहीं थे (याद रखे कुछ ही दिन पहले इन्हें दुनिया की सबसे खतरनाक तेज गेंदबाज जोड़ी कहा जा रहा था)। धोनी की कप्तानी पहले जैसे ही रही हां वह बल्लेबाजी में जरूर खराब साबित हुए। उन्होंने इन दिनों शॉट खेलने की क्षमता खो दी है। लेकिन यह वापस आ सकती है। पिछले विश्व कप में उन्होंने जिस बल्लेबाज को क्रीज पर भेजा उसने रन बनाए, जिस गेंदबाज के हाथ में गेंद दी उसने विकेट लिए। इस बार ऐसा नहीं हुआ। होता है ऐसा।

हम भी ऑफिस में रोज एक जैसा काम नहीं करते। कभी यहां कभी वहा गलती होती रहती है जिसे हम ठीक करते रहते हैं। क्रिकेट में इतनी सी गलती से बल्लेबाज आउट हो जाते हैं और वह हमारी तरह इसे बदल नहीं सकते।
मुमकिन है कल धोनी के घर कुछ बेवकूफ क्रिकेट प्रशंसक पत्थरबाजी कर दे। कहीं जहीर का पुतला फूंका जाए तो कहीं रोहित शर्मा के नाम की हाय-हाय हो। लेकिन यह कितना जायज है। धोनी को बदल कर किसे कप्तान बना देंगे। है कोई विकल्प। गम्भीर से बेहतर ओपनर कौन है हमारे पास। क्या कोई अन्य भारतीय ट्वंटी 20 क्रिकेट में रोहित शर्मा से बेहतर यूटीलिटी प्लेयर है। समय है इस हार को पचाने का। ज्यादा शोर-शराबे से कुछ होगा नहीं। नाहक ही टीम पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा। और यह कोई वह विश्व कप नहीं जो चार साल में एक बार होता है। अगला ट्वंटी 20 विश्व कप अगले ही साल होना है।

कुछ दिन बाद भारत को वेस्टइण्डीज जाना है चार वनडे की सीरीज खेलने। सितंबर में चैम्पियंस ट्रॉफी भी होगी। अक्टूबर में आस्ट्रेलियाई टीम भारत आ रही है सात वनडे खेलने। और भी कई मैच हैं। हमें टीम का मनोबल सिर्फ इस हार की वजह से गिरने नहीं देना चाहिए।

Sunday, June 14, 2009

न्यूजीलैण्ड टीम का साइकोलॉजिकल बैरियर

अगर आपने 1986 में शारजाह में हुए आस्ट्रेलेशिया कप का फाइनल देखा नहीं होगा तो इसके बारे में सुना जरूर होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस मैच के आखिरी ओवर की आखिरी गेंद पर पाकिस्तान को जीत के लिए चार रन की दरकार थी। भारतीय गेंदबाज चेतन शर्मा ने फुलटॉस गेंद डाली और जावेद मियांदाद ने इसपर छक्का जड़ दिया। इस मैच के बाद भारतीयों का दिल ऐसा टूटा कि आने वाले कुछ सालों तक भारतीय टीम पाकिस्तान के खिलाफ नजदीकी मैच जीत ही नहीं पाती थी। यानी भारतीय टीम पाकिस्तान के खिलाफ एक साइकोलोजिकल बैरियर से ग्रस्त हो गई।

कुछ ऐसा ही साइकोलोजिकल बैरियर पाकिस्तान टीम को भारत के खिलाफ विश्व कप मैचों में है। किसी भी क्रिकेट विश्व कप में दोनों टीमों की तैयारी या फॉर्म कैसी भी क्यों न हो आपसी मुकाबले में जीत भारत की ही होती है। यह सिलसिला 1992 वनडे विश्व कप से शुरू हुआ और दक्षिण अफ्रीका में हुए पिछले ट्वंटी 20 विश्व कप तक जारी था।

इसी तरह के एक मनोवैज्ञानिक अवरोध से न्यूजीलैण्ड की टीम भी ग्रस्त है। आज की तारीख में वह पाकिस्तान से अच्छी और बेहतर फॉर्म वाली ट्वंटी 20 टीम थी लेकिन 13 जून को हुए मैच में उसे पाकिस्तान ने आसानी से मात दे दी। पाकिस्तान के खिलाफ हथियार डाल देने का कीवी टीम का सिलसिला 1992 विश्व कप के सेमीफाइनल के बाद शुरू हुआ। इस विश्व कप में मार्टन क्रो की कप्तानी में न्यूजीलैण्ड की टीम बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी। उसने लगातार सात लीग मैच जीते। आठवें और आखिरी लीग मैच में न्यूजीलैण्ड का सामना पाकिस्तान से था। कहा जाता है कि न्यूजीलैण्ड यह मैच जानबूझ कर हार गया। अगर वह यह मैच जीतता तो सेमीफाइनल में उसका सामना आस्ट्रेलिया से आस्ट्रेलिया में होता और हार की स्थिति में उसे अपने देश में पाकिस्तान से ही भिड़ना था। पाकिस्तान की टीम उस विश्व कप में तब तक अच्छा खेल पाने में असफल रही थी औऱ क्रो भरोसा था कि वह इमरान की टीम को सेमीफाइनल में आसानी से हरा देगी। सेमीफाइनल में न्यूजीलैण्ड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 262 रन का सम्मानजनक स्कोर बनाया। उस समय 250 से ऊपर का स्कोर मैच जिताऊ माना जाता था। जवाब में पाकिस्तान की टीम 140 रन पर चार विकेट गंवाकर काफी दबाव में थी क्योंकि तब तक ओवर भी काफी निकल गए थे। यहीं से इंजमाम उल हक ने ऐसी पारी खेली जिसे उनके प्रशंसक आज भी याद रखे हुए हैं। उन्होंने 37 गेंदों पर 60 रन ठोक डाले और पाकिस्तान को जीत दिला न्यूजीलैण्ड का सपना चकनाचूर कर दिया।
इस हार के बाद कीवी टीम कभी भी विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ मैच नहीं जीत पाई है। उसे 1996 और 1999 वन विश्व कप में पाक ने बुरी तरह हराया। 2003 और 2007 विश्व कप में इन दोनों का सामना नहीं हुआ। पिछले ट्वंटी 20 विश्व में और इस ट्वंटी 20 विश्व कप में पाकिस्तान न्यूजीलैण्ड के खिलाफ भारी पड़ा।

क्रिकेट में किसी टीम या या कुछ खिलाड़ियों के और भी ऐसे साइकोलॉजिकल बैरियर रहे हैं। कुछ ने इससे पार पा लिया तो कुछ अभी भी इससे जूझ रहे हैं। जैसे शेन वार्न अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर में सचिन तेंदुलकर के सामने सफल नहीं हुए। पाकिस्तानी बल्लेबाजों को वेंकटेश प्रसाद से हमेशा दिक्कत हुई। ट्वंटी 20 में भारत न्यूजीलैण्ड से नहीं जीत पाता है। मिस्बाह उल हक पाकस्तानी टीम को जीत के करीब ले जाकर आउट हो जाते हैं खास कर भारत के खिलाफ।

वैसे तो इंग्लैण्ड की टीम भी इन दिनों भारत के खिलाफ कोई बड़ा मैच नहीं जीत सकी है। यह सिलसिला 1999 वन-डे विश्व कप से शुरू हुआ था। देखने वाली बात है कि लॉर्ड्स में आज क्या होगा। याद रखिए भारत आज हारा तो बाहर। फिर सब मिलकर फीफा कनफेडरेशन कप फुटबाल देखेंगे। ब्राजील और इटली के जलवे।

Saturday, June 13, 2009

क्या इंग्लैण्ड के खिलाफ योजना बदलेंगे धोनी?

सुपर एट चरण में भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही और उसे वेस्टइण्डीज के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस हार से इतना तो तय हो गया कि जिस योजना के साथ भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी टूर्नामेंट में उतरे वह सफल नहीं हो रही है। अब इंग्लैण्ड के खिलाफ रविवार को होने वाले मैच में धोनी को नई योजना या यूं कहें कि प्लान बी के साथ उतरना होगा नहीं तो गत विजेता भारत टूर्नामेंट के बीच में ही सेमीफाइनल की होड़ से बाहर हो सकता है।

धोनी की योजना की सबसे बड़ी खामी रही कि वह अब तक हुए मैचों में पांच विशेषज्ञ गेंदबाजों के साथ उतरे। इससे भारत के बल्लेबाजी क्रम की गहराई कम हुई और बल्लेबाजों के ऊपर विकेट बचाने का अतिरिक्त दबाव भी आया। सबसे ज्यादा दबाव में तो खुद कप्तान ही दिखे जिन्होंने कैरेबियाई टीम के खिलाफ 23 गेंदें झेल कर सिर्फ 11 रन बनाए। उनके अलावा गौतम गंभीर भी वह तेजी नहीं दिखा सके जिसके लिए वह जाने जाते हैं। ट्वंटी 20 मूलत: बल्लेबाजों का खेल है और यहां उन्हें खुलकर खेलने की आजादी मिलनी ही चाहिए। अगल विकेट बचाने का दबाव आया तो जाहिर है रन रेट कम होगा।

अब भारत को फिर से सात बल्लेबाजों की थ्योरी अपनानी होगी। इसके लिए हरभजन या प्रज्ञान ओझा में से एक को अंतिम एकादश से बाहर कर दिनेश कार्तिक को टीम में शामिल करना होगा। यह मुश्किल फैसला हो सकता है लेकिन टीम के हित में ऐसा करना बेहद जरूरी हो गया है। साथ ही ईशांत शर्मा के स्थान पर प्रवीण कुमार को मौका दिया जाना चाहिए। प्रवीण आईपीएल में बेहद सफल रहे थे और वह जरूरत पडऩे पर कुछ रन भी बना सकते हैं। सुरेश रैना, युवराज सिंह, रोहित शर्मा और यूसुफ पठान मिलकर चार ओवर तो डाल ही सकते हैं।

इसके आलावा धोनी एक और बड़ी गलती जो कर रहे हैं वह है उनका बल्लेबाजी क्रम में ऊपर आना। पहले बांग्लादेश के खिलाफ हुए ग्रुप मैच में और फिर वेस्टइण्डीज के खिलाफ मैच में धोनी ने जरूरत से ज्यादा गेंदें व्यर्थ की। वनडे मैचों में संकट के समय उनकी ऐसी बल्लेबाजी तो जायज है लेकिन ट्वंटी 20 क्रिकेट में ऐसे प्रदर्शन से टीम को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। धोनी पिछले करीब दो साल निचले मध्यक्रम में बल्लेबाजी के लिए आते हैं और सिंगल, डबल के सहारे अपनी पारी को आगे बढ़ाते हैं। अब वह भले ही ऊपर बल्लेबाजी के लिए आ रहे हों लेकिन सिंगल-डबल वाली उनकी आदत गई नहीं। खुद नीचे आने के साथ-साथ उन्हें बल्लेबाजी क्रम में भी बदलाव करने चाहिए।

गंभीर के साथ ओपनिंग जिम्मेदारी यूसुफ पठान को सौंपी जाए। क्योंकि गंभीर अभी तक पुरानी रंगत में नहीं लौटे हैं ऐसे में यूसुफ के साथ रहने से टीम का रन रेट अच्छा रहेगा। तीसरे नंबर पर रैना और चौथे नंबर पर युवराज बल्लेबाजी करें। पांचवें नंबर पर रोहित शर्मा को मौका मिले। छठे नंबर पर कार्तिक और सातवें नंबर पर धोनी आएं। अगर धोनी यूसुफ को मध्य क्रम में इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इरफान पठान से ओपनिंग कराई जा सकती है।

टीम में सात बल्लेबाज होने से भारत को किसी बड़े स्कोर का पीछा करने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। आश्चर्य की बात तो यह है कि जब भारत पिछले विश्व कप समेत तमाम टूर्नामेंट में इस फॉर्मूले के साथ कामयाब हुआ तो यहां इसमें बदलाव की क्या जरूरत थी। पांच गेंदबाजों की थ्योरी उस टीम के लिए अच्छी है जिसके पास क्वालिटी ऑलराउंडर हों लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है। यहां तक ऑलराउंडरों से भरपूर दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैण्ड ने भी सात बल्लेबाजों के साथ उतरने पर ही भरोसा किया।

Thursday, June 11, 2009

धोनी और सहवाग में मनमुटाव नई बात नहीं

इस ट्वंटी 20 विश्व कप में भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और उप कप्तान वीरेन्द्र सहवाग के बीच मनमुटाव की अटकलों ने भारतीय टीम के शुरुआती प्रदर्शन से भी ज्यादा सुर्खियां बटोरी। अंततः चोटिल सहवाग वापस स्वदेश लौट गए और उनके स्थान पर दिनेश कार्तिक टीम इंडिया से जुड़ गए।

धोनी ने सहवाग के मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलनों में जिस तरह जवाब दिया उससे मीडिया का इन दोनों के संबंध में खटास का अनुमान लगाना बिल्कुल जायज था। धोनी को इस पर गुस्सा होने की बजाय स्थिति साफ करनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। हां उन्होंने अगले प्रेस कांफ्रेंस में पूरी टीम की यूनिटी परेड कराकर ड्रामेबाजी जरूर की।
अब मुद्दे की बात की जाए। जिन लोगों को धोनी और सहवाग के बीच अनबन की खबर से अचरज हो रहा हो तो उन्हें पता होना चाहिए कि इन दोनों के संबंध कभी बहुत मधुर नहीं रहे हैं।

पिछले ट्वंटी 20 विश्व कप को ही याद कीजिए। जिस फाइनल मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता था उस मैच में धोनी ने सौ फीसदी फिट सहवाग को अंतिम एकादश में शामिल नहीं किया था। इसके अलावा भी उन्होंने इस टूनार्मेंट के एक और मैच में भी सहवाग को टीम में नहीं लिया था। इसके बाद भी धोनी ने आगे हुए कई मैचों में सहवाग को टीम में शामिल नहीं किया। इस बीच सहवाग ने भारतीय टेस्ट टीम में भी अपनी जगह गंवा दी। हालांकि तब धोनी टेस्ट टीम के कप्तान नहीं थे। भारतीय टीम के 2007-08 के आस्ट्रेलियाई दौरे पर तत्कालीन कप्तान अनिल कुम्बले सहवाग की टेस्ट टीम में वापसी कराई। पर्थ के ऐतिहासिक टेस्ट में दो छोटी लेकिन अच्छी पारियां खेलने के बाद सहवाग ने एडीलेड टेस्ट में शानदार शतक जड़ा और वह इसके बाद त्रिकोणीय वनडे सीरीज में भी टीम में लौट गए। लेकिन तब तक भी धोनी का सहवाग पर पूरा भरोसा नहीं जमा था और उन्होंने कुछ मैचों में उन्हें अंतिम एकादश में नहीं रखा।

धोनी का सहवाग पर अविश्वास करने की जो प्रमुख कारण हैं उनमें एक सहवाग का फिटनेस पर पूरा ध्यान नहीं देना भी है। साथ ही वह बल्लेबाजी के वक्त कई बार गैर जिम्मेदार भी हो जाते हैं। लेकिन यही सबसे बड़ी वजह नहीं जान पड़ती है। यह ऐसा बहाना लगता है जिसे धोनी सहवाग के खिलाफ इस्तेमाल करने की ताक में रहते हैं। नहीं तो धोनी उस आर.पी.सिंह के पक्ष में कप्तानी से इस्तीफा देने की धमकी कैसे दे दते जिनकी फिटनेस और फील्डिंग टीम में सबसे खराब है (यह वाकया कुछ दिनों पहले ही हुआ था जब चयनकर्ताओं ने आरपी के स्थान पर इरफान पठान को टीम में रखा था और धोनी नाराज हो गए थे)।

सहवाग-धोनी के अनबन के पीछे सबसे बड़ा कारण सहवाग का उपकप्तान होना है। अगर धोनी काफी लोकप्रिय हैं तो सहवाग उनसे पीछे नहीं। धोनी अगर चतुर कप्तान माने जाते हैं तो यह खूबी सहवाग में भी है (हालांकि पिछले एक-दो अवसरों पर मिले मौकों को नहीं भुना सके)। सहवाग से पहले धोनी के परम मित्र युवराज सिंह टीम के उप कप्तान थे। लेकिन एक समय उन्होंने टीम पर ध्यान देने से ज्यादा अन्य बातों को तरजीह देना शुरू कर दिया था लिहाजा चयनकर्ताओं ने उनकी उपकप्तानी छीन ली थी।

कहा यह भी जा रहा है कि सहवाग ने अपनी चोट छिपाई लेकिन इस तर्क में दम नजर नहीं आ रहा है। सहवाग आईपीएल टूर्नामेंट से ही चोटिल हैं और यह बात तह उन्होंने छिपाई नहीं थी। वह इस चोट के कारण दिल्ली डेयर डेविल्स के लिए कई मैच नहीं खेल पाए थे। यह भले हो सकता है कि भारतीय टीम के फीजियो ने सहवाग की चोट का गलत आकलन किया हो। उन्हें लगा कि सहवाग जल्द ठीक हो जाएंगे लेकिन वह नहीं हुए। ऐसा तो होता रहता है। जहीर खान के साथ भी ऐसा ही हुआ था।

मामला यह भी है कि सहवाग आजकल सलामी बल्लेबाजी नहीं करना चाहते हैं और यह बात धोनी को पसंद नहीं। सहवाग की इच्छा नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने थी लेकिन धोनी ने खुद नंबर तीन पर आना शुरू कर दिया। यह बात अलग है कि आईपीएल में उन्होंने अपनी टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए सुरेश रैना को नंबर तीन का जिम्मा सौंपा था जिसमें वह काफी सफल भी रहे थे। यही रैना इस विश्व कप में अब तक ठीक से अभ्यास भी नहीं कर पाए।

धोनी निंसदेंह अच्छे कप्तान रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने गलत कदम उठा दिया है। सहवाग मुद्दे को वह काफी व्यक्तिगत स्तर पर ले जा रहे हैं जिससे आगे चलकर उनका और टीम का ही नुकसान होने वाला है।

Sunday, June 7, 2009

देश के नाम पर

खेल की दुनिया में ‘प्रोफेसनल अप्रोच’ का बड़ा महत्व है। यानी आप चाहे देश के लिए खेलें या किसी क्लब के लिए अपना शत प्रतिशत योगदान दें। विश्व में विभिन्न खेलों के कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो इस ‘प्रोफेसनल अप्रोच’ वाले मंत्र को गहरे आत्मसात किए होते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो देश के लिए कमतर और क्लब के लिए बेहतर प्रदर्शन करते हैं। लेकिन भारत के कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जिनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तभी सामने आता है जब वे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। टेनिस में लिएंडर पेस और क्रिकेट में सौरव गांगुली कुछ ऐसे ही नाम हैं। मौजूदा समय में युवराज सिंह और वीरेन्द्र सहवाग भी ऐसे ही क्रिकेटर हैं जिनका असली रंग तभी निखरता है जब हो तिरंगे के नीचे खेल रहे हों न कि किंग्स इलेवन पंजाब या दिल्ली डेयर डेविल्स के झंडे तले।

हाल ही संपन्न इंडियन प्रीमियर लीग के दूसरे संस्करण में यह दोनों बल्लेबाज कुछ खास नहीं कर पाए। लेकिन ट्वंटी 20 विश्व कप में भारत के पहले ही मैच में युवराज फॉर्म में लौट आए। उनके 18 गेंदों पर चार छक्कों की मदद से बनाए 41 रन ने बांग्लादेश के उटलफेर की सारी मंशाओं पर पानी फेर दिया। सहवाग चोटिल होने के कारण इस मैच में नहीं खेल सके लेकिन इतना तय है कि मौका मिलने पर वह भी आईपीएल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

देश के नाम पर अच्छा खेलने की इन खिलाड़ियों की इस खासियत से चयनकर्ता भी परिचित हैं। तभी तो घरेलू क्रिकेट में इनके औसत प्रदर्शन के बावजूद इन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जौहर दिखाने का मौका मिलता रहता है। याद कीजिए भारत के पिछले आस्ट्रेलियाई दौरे के लिए सहवाग की वापसी को। उस समय सहवाग भारतीय टीम से बाहर थे और उन्होंने उन दिनों में घरेलू क्रिकेट में भी कोई कमाल नहीं दिखाया था। लेकिन तात्कालीन कप्चान अनिल कुम्बले की मांग पर सहवाग टीम में वापस आए। इसके बाद जो हुआ वह अपने आप में इतिहास है। युवराज के साथ भी ऐसा ही है। पंजाब की रणजी टीम या किंग्स इलेवन पंजाब के लिए उन्होंने अब तक कोई ऐसी पारी नहीं खेली है जिसे दर्शक लम्बे समय तक याद रखें। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उन्होंने कई कभी न भूलने वाली पारियां खेली हैं।

इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है वह यह है कि भारत और भारतीयों को अच्छा करने की प्रेरणा प्रोफेशनल कारणों से नहीं बल्कि इमोशनल कारणों से मिलती है। जाहिर है जो भावनात्मक उबाल देश के नाम पर आ सकता है वह क्लब या राज्य के नाम पर नहीं आ सकता है।

ब्लोग्वानी

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